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________________ असीइमो संधि नहीं सुना। तुम्हारे दशरथ और भरतने बहुत बड़े काम किये, तब इस इक्ष्वाकु वंशकी स्थापना हो सकी, अगर तुम इतनी बड़ी घोषणा करते हो, तो जाओ अपने यशकी रक्षा करो। यदि तुम मुझसे उत्पन्न हुए हो और पिता दशरथसे जनित हो, तो पीछे पग मत देना, सामने-सामने शत्रुको जीतना । हे पुत्र, तुम राजा मधुकी सुन्दर शोभित मथुरा नगरीका विलासिनी स्त्रीकी तरह प्रयत्नपूर्वक भोग करना। वह मथुरा नगरी, ध्वजाओं रूपी मालासे अलंकृत है, मधु राजा ( इस नामका राजा, और कामदेव ) से अधिष्ठित है ।। १-२|| [२] अपनी गुण सम्पदामें बढ़ो-चढ़ी सुप्रभाने जब शत्रुघ्न को आशीर्वाद दिया, तो अनेक युद्धोंके विजेता रामने उसे अपना धनुष तीर दे दिया । लक्ष्मणने भी रावणके दसों सिरोंको काटनेवाला अपना धनुष उसे प्रदान कर दिया। कृतान्तपत्र नामक प्रसिद्ध सेनापति और सामन्त सेना भो उसके साथ कर दी। लाखों सामन्तोंसे घिरे हुए शत्रुघ्नने इस प्रकार अयोध्यासे बाहर कूच किया । जाते हुए उसे खूब शकुन हुए, जो श्रीमन्त होते हैं उन्हें सभी बातें मिलती हैं। सेनाके साथ यह कल्याणसे दूर नराधिप मधुपर जा पहुँचा । तब मन्त्रियोंने शत्रुघ्नसे कहा, "हे अनेक शत्रुओंका हनन करनेवाले, आपकी जय हो, आप फूल-फलें।" उसने गुप्तचर सामन्तोंको आदेश दिया, "जाओ मधुमस मथुराधिपको ढूंद निकालो । आदरणीय वह आजसे छह दिन के लिए उद्यान में प्रविष्ट हुआ है" ॥१-९|| [s] "जब तक शूल उसके हाथ नहीं लगता, तबतक मथुराधिपको पकड़ लो।" इन शब्दोंसे योद्धा उछल पड़े और आधी रात होनेपर उन्होंने कुच कर दिया। उन्होंने नगरको घेर लिया, दरवाजे रोक लिये, सब लोग उरसे विकल होकर
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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