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परमचरित सामन्त मिजन्तैवि रामयण । सत्ताणु घुस जीयाहवेंग ॥६॥ 'ग पहुचइ काइँ एह पिहिमि । सोमिसिह तुम्नु मझु तिहि मि ॥७॥ परिजई तो इ मझे जणहीं। कह मण्डल जं मावद मणहाँ '।।८॥
पत्ता बुकमाइ सुम्पह-गन्दर्गेण 'जब महु दय किजाइ । तो वरि महरायहाँ तणिय महुराउरि दिवई' ।। ||
[३] तो मणे चिन्तात्रिउ दासरहि। 'दुग्गेज्म महुर सिंह पहसरहि || १|| दुमहु महु महु बि असज्झु रणे | अनुवि रावणु ण मुउ गरें ।२।। भय-मावि-मणु-मा-मासुरेण । जसु दिगु सूलु चमरासुरेण ||३|| सो महुरणराहिउ केण जिउ । फणपइहें फणामणिः केण हिउ ||४|| नहुँ अज्जु वि वालु काल कघण । तियसहु मि भयङ्करु लोइ रणु ॥५॥ दुदम-दणु-रह-वियारणहुँ । किह भङ्गु समोहि पहरणहुँ' ।।६।। पणधेप्पिणु पभणइ सत्तुहणु। 'हउँ देव णिरुत्तउ सत्तु-हणु ॥७॥ जइ महुर-णराहिउ गउ हमि । तो रहुबई पइ मि य जय भणमि ॥ ८ ॥
घत्ता
पइसइ जइ विसरणु नमहाँ अहवइ जम बप्पहाँ। जीय-महाविसु अवहरमि महुराहिव-सप्पी ' १९:।
[४] गजन्तु णिवारिज सुप्पहएँ। किं पुस्स परजा सम्पयएँ ।।३।। बोलिज्जई तंज णिवलइ। मद चोकं हि सुहड ण जउ लहह ॥२॥ किं साहसु दिव ण मायब हुँ। किउ विहिं जें विणासु णिसाथरहे ।।३।। किषण मुणित णिस्बम-गुण-मरिउ । अगरगन्तवीर चरिउ ।।४।।