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________________ ! I असीम संधि १२१ अस्सीवीं सन्धि रघुपति राजगद्दी पर बैठे। भरत तपोवन के लिए चल दिये। रामने आजीविका के लिए सामन्तों को सारी धरती बाँट दी। [१] लक्ष्मण के लिए तीन खण्ड धरती । चन्दोदरके लिए पाताललंका | धन-धान्यसे समृद्ध विशाल किष्किन्धा नगर सुग्रीवके लिए । चन्द्रकान्तमणि के शिलाफलक पर जिसका यश लिखा गया है उस विभीषण को लंकापुरी का अचल शासन दिए गया। श्रीपर्वतमण्डल सहित रथनपुर नगर योद्धाओं में चूडामणि भामण्डल के लिए और कई द्वीप नल-नील के लिए दिये गये। दुर्जेय महेन्द्र के लिए माहेन्द्रपुरी । पवनसुत के लिए आदित्यनगर। दूसरों-दूसरों के लिए भी ऐसे ही नगर प्रदान किये जिनके गृहोंके शिखरों से आकाशमें सूर्य चन्द्र रगड़ खाते थे। रामने इस प्रकार लोगों को जीवनदान दिया। उन्होंने यह घोषणा भी की - "जो भी राजा हुआ है या होगा, उससे मैं (राम) यही प्रार्थना करता हूँ कि दुनियामें किसीके प्रति कठोर नहीं होना चाहिए। "न्यायसे दसवाँ अंश लेकर प्रजाका पालन करना चाहिए। देवताओं, श्रमणों और ब्राह्मणों को पीड़ा कभी मत पहुँचाओ” ॥१-१०॥ [२] रामने फिर अभ्यर्थना की, “राजा वही है, जो धरतीका पालन करता है। जो प्रजासे प्रेम रखता है, नय और विनयमें आस्था रखता है, वही अविचल रूपसे अपना राज्य करता है । जो राजा देवभागका अपहरण करता है, दोहली भूमिदानका अन्त करता है, वह तीन ही दिनमें विनाशको प्राप्त होता है, तीन दिनमें नहीं तो तीन गाहमें तीन सालमें, अवश्य उसका नाश होता है। यदि इतने समय में भी बच गया तो दूसरे जन्म में अवश्य उसका अकल्याण होगा।" इस प्रकार "
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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