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परमचरिट
[८०. असीइमो संधि ]
रहबद रज्जु काम थिउ गर भरहु नवोवणु ।
दिग्ण विहमें वि सयक महि सामन्तहुँ जीवणु ॥ चसुमइ सि-खण्ड-मण्डिय हरिहैं। पायाला बन्दीपरिहूँ ।।11 भण-कणय-समिदा पउर-पवरु। सुग्गीयहाँ गिरि-किकिन्ध-पुरु ॥२॥ ससि-फलिह-लिहिय-जस-सासणहौं । सकाउनि मचल विहोसणही ॥३॥ पण-मनही भर-बामणिहें। सिरिपम्पय-माल पायणि ॥४॥ रहणेउर-पुरु भामण्डलहौं । कह-दोषु दिग्णु णीकहाँ कहाँ ॥५॥ माहिन्दि महिन्दही दुजयहों। माइक-णयह पषणायहाँ ॥६।। अबराह मि अवर, पण। घर-सिहर-रबिन्दु-विष्टणहूँ ।।७।। बलु जीवणु देह विघोसा वि। 'जो णरबह हवउ होसइ वि ॥६॥ सो सयल वि माँ भन्मधिउ । मा होड को वि जर्गे दुरिथयड ॥५॥
घसा णाएं भाएं दसमऍण पय परिपाळेनहो। देवह सवणहूँ वम्मणहूँ में पीढ कीजहाँ '||
पुणु पुणु भन्मस्था दासरहि। 'सो णरबह जो पालेइ महि ।।३।। भानु पपएँ पय विणय-पर। सो भविषलु रजु करे करू ।।२।। जो घर पुणु देव-मोग हर। वर-थावर-विति छेउ करा ॥२॥ सा खयहाँ जाइ तिहि वासरे हि । तिहि मासहि सिहि संवरकरें हि ॥ जई कह वि चुछ तहाँ अवसरहों। तो अकुस लु अग्ण-भवम्तरहो' ५।।