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एक्कूणासीमो संधि
१९ गवान और शंख, विभीषण, नल, नील, अंगद, तार, तरंग, रंभ, पवनमुत, कौशल्या, कैकेयी, केकय, सुप्रभा और अन्तःपुरके साथ सीता भी वहाँ पहुँचौ । सबने बन्दना-भक्ति की और इस मकारका धर्म गुरसपने तब बई महामुनिसे पूछा, "यह विजगविभूषण महागज न तो आहार ग्रहण करता है और न जल, वैसे ही जैसे महामुनि पातकके कणको भी नहीं लेते। मुनिवरने भरत और उस महागजके सारे जन्मान्तर बता दिये । उन्हें सुनकर कैकेयीपुत्र भरतने हजारों सामन्तोंक साथ दीक्षा ग्रहण कर ली ।।१-६।।
[१४] जब विक्रम नय और पराक्रमसे प्रसाधित हजारों साधक सामन्तों के साथ भरतने मणि रत्नोंके समस्त आभूषण छोड़ दिये और महामुनिका रूप ग्रहण कर लिया तो सैकड़ों युवतियोंके साथ कैकेयीने भी केश लोंच कर दीक्षा ग्रहण कर स्ली । वह बिजगविभूषण महागज भी मर कर ब्रह्मोत्तर स्वर्गमें देवेन्द्र बन गया। राजा भरतको ज्ञान उत्पन्न हो गया और बहुत दिनोंके बाद, उनके इस संसार का अन्त हो गया। उसके अनन्तर भामण्डल, किष्किन्धाराज, नल, नील, विभीषण, अंगन, दधिमुख, महेन्द्र, पवनसुत, चन्द्रोदरसुत, जम्बुव आदि दूसरे योद्धाओं और विद्याधरोंने रामका राज्याभिषेक किया । रघुनन्दनको राज्यपट्ट बाँध दिया गया, और स्वर्ण कलशों से उनका अभिधेक हुआ। लक्ष्मण भी अपने चक्र रत्नके साथ धरतीका भोग करने लगे॥१-९||