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________________ एक्कूणासोमी संधि निजगभूषण महागजने अपना आलान स्तम्भ तोड़-फोड़ डाला । सैकड़ों घरोंको तहस-नहस करता हुआ, घुमता-घामता महासरोवरके निकट पहुँचा। वहाँ भरतको देखकर उसे पूर्वजन्मका स्मरण हो आया कि यह तो मेरा जन्मान्तरका मित्र है और ब्रह्मोत्तर स्वर्ग में भी मेरे साथ रहा है। यह पुण्य के प्रभावसे ही सम्भव हो सका कि यह राजा है और मैं मत्तगज। यह सोच कर वह एक कौर नहीं खाता, और न पानी पीता, सहसा मूर्ति के समान जड़ हो गया ॥१-१०॥ [१२] महागज त्रिजगभूषण जब पूर्वजन्मकी याद कर रहा था, तभी पुष्पक विमानमें बैठकर राम और लक्ष्मण दोनों भाई आये, मानो गतिशील सूर्य और चन्द्रमा हों। राजा भरत भी विशल्या सुन्दरी और सीता देवीके साथ उस महागजपर इस प्रकार बैठ गया मानो इन्द्र हो ऐरावतपर बैठ गया हो। जय जय शब्द के साथ नगर में प्रवेश करते ही चारणों, वामनों और नगाड़ोंकी ध्वनि होने लगी। महागजको आलान-स्तम्भसे बाँध दिया, भ्रमरमाला उसके चारों ओर कलकल आवाज कर रही थी। परन्तु वह न कौर ग्रहण करता था और न पानी। उस कुंजरके चरितको कोई भी नहीं समझ पा रहा था। अन्त में अनुचरों ने जाकर रामसे कहा, "गजराजका अब जीना कठिन है ।" गजवरके व्रताचरणको सुनकर रामलक्ष्मणको बहुत भारी चिन्ता हो गयी। इसी बीच कुलभूषण और देशभूषण महाराजका समवसरण वहा माया ॥१-२॥ [१३] महामुनिका आगमन सुनकर राम अत्यन्त आदरके साथ उनकी वन्दना-भक्तिके लिए गये। शत्रुघ्न, भरत और लक्ष्मण भी गये | अपने अश्चों, रथों और गजोंके साथ भामण्डल, सुप्रीब, विराति और हर्षातिरेकसे भरे गवय,
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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