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णिय आलाण- खम्भु उप्पादेवि ।
तं जे महा-सह ।
परिममन्तु 'परम मित्र हुग्ण भवन्तरे।
पडमचरित
घत्ता
हु गरइहउँ पुणु मस- गउ' ।
पुण्ण-पहावें सम्मत्रिव कवल पण ले पण पिइ जलु अत्यकऍ बिउ लेप्यमड ||१०||
करि सम्मरइ भवन्तरु जावहिं । लक्खण-राम पराइय भायर
वर विरार-पीट चंदि महा गएँ, विहुअणभूषणं । पुरे पसन्ते जय-जय- सर्दे । तो आकाय खम्में करें आउि । कलु ह ण मेण्हइ पाणिड कहिउ करिल्लेहिं पक्कयाह ।
तं गवर- वइयह सुवि आवड ताव समोसरणु
मन्दिर सयह अयहँ पार्श्वेषि ॥७॥ मरहु पिएवि जाउ जाई - लरु ||८|| विसिय सौं वे विस्भोत्तरे ||९||
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पुष्प -विमाणु चडेपणु तावहिं ॥ १॥ णं सचारिम चन्द - दिवायर || २ || næponità á að đông nam सुरवर पाहु णाइँ अरावण ॥४॥ बहिण-मण- तूर - णिण हूँ ॥ ५ ॥ अविरला कि-रिन्छोखि बसालिङ || ३ || कुअर चरिण के वि जाणिउ ॥ ॥ 'दुष्कर जीवित वारण शाह' ||८||
गय वस्तुहृण-मर स जगण । भामण्डल - मुग्गीच विराहिय ।
घता
उप्पण्णचिन्तवक्खणहुँ । कुलभूषण देस विसन हुँ ॥ ९ ॥
[१३]
रिसि आगमणु सुषि परमन्सिएँ । गड रहु-णन्दणु चन्दणहसिएँ ||१|| स- तुम - गन्द स-सम् गवय-गववव-स रहसाहिय ॥ ३ ॥
॥२॥