________________
पड़मचरित
'यत्ता गुत्र विजं अवर किय चलाक-मुरल-कल-पो रहीं। 'जिह सक्कहाँ तिह पहिरखलहौं' आपसु दिण्णु अन्तेररही ।।२।।
[१०] जं भागलु दिष्णु घर-विलहुँ। जाणइ-पमुहहुँ गुण-गण-णियहुँ ।। गह-मणि-किरण-करालिय-गयगहुँ । रमणावासावासिय-मयाहुँ ॥२॥ थग-गयउर-पल्लाषिय-जाह हुँ 1 रूबीहामिय-सुरबहु-साहई ।।३।। सबल-कला-कलाष-कल-कुसलहुँ । मुह-मारुअ-महाविय-मसलहुँ ।।।। माह-मरासण-लोयण-वागहुँ । कस-णिवन्मण-जिय-गिम्वागहुँ ॥५॥ विक्रमादिय-वम्मह-सोहरगहुँ । कानण्णम्म-भरिय-पुरि-मग्गहुँ ।। तो कल्याणमाल-षणमादि। गुपावइ-गुणमहन्ध-गुणमालानि ।। सलम-विसल्लासुन्दरि-सोयहि । बजयपण-सोहोयर-धायहि ॥६॥
बुबह भरह-राहिवा देवर योटी वार वरि
पत्ता 'सर-मझें तरन्त-तरन्साई । भच्छहुँ जर-कील करन्ताई' ॥२॥
से परिवाणु पइट्स महा-सरु। जल-कीलहें वि अचलु परमेसर ॥१॥ मग्याउ सुन्दरीज पड-पास हि । गाडालिका-चुम्बण-हासं हि ॥२॥ रेखा-भाव-माव-विग्णासें हि। किलिफिशिय-विच्छित्ति-विकाहि ।। मोहाविय कोहमिय-विचारहि । विक्रमम-वर-विम्योक-पपाहि ॥७॥ तो वि ग सहिड भरहु सहसुहिड। बविचलु गं गिरि मेरु परिहिउ ॥५॥ माछह जाव तीरें सुह-दंस । वा महा गउ तिमाहिसणु ॥६॥