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परिज
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जिह ण ताठ सिह हउ मिण कालें। रज्जु गिधु धिगत्यहूँ छन्तहूँ । चण्ड ताड जेण परिहरियहूँ । ह पुणु कु-पुरिसु दुण्णय-वन्त । मुनि पायें चिरु लइड अगहु
पर नामोहिउ मोहण जाले ॥१॥ घरु परियणुधणु पुस- कलई || २ || तुम गामिया दुम्बरियाँ || ३ || अज वि अच्छमि विसयासतद' ॥४॥ 'रामागमणे होमि अ-परिगहु ॥ ५॥
जहिं जे दिवसेतिणि वि निरिह हुँ । जहि जे दिवस यि गय प हूँ । ६ ।
सहजं
जो
"दुट्ट-सहाउ कसाएं लइयउ |
अग्ग-महिसि करें जणय सुय अप्पुणु पाहि सयक महि
तहूँ हूँ तं जें सिंहासणु । मामण्डलु सुग्गी विदीसणु ।
ठाएं कब सच् किर जम्पिङ । वहीं भवियहाँ सुखि पर मरणं । ते विविति भदारा रजहों । तो जिय-जाउहाण सङ्ग्रामें । 'अज्जु वि तुहुँ जे राज से किक्कर | ते सामन्त अम्हें से मायर ।
को अ-सजणु ॥७॥
रामाममें जि भरहु परुष उस
धत्ता
मन्तित्तणु देवि जणदणहों । हरहु जामि तवोषण हों ||१||
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तुम्हाँ षणु महु रज्जु समप्पि ॥ १ ॥ अहद घोर-वीर सब चरणे ॥२॥ एवहिं जामि यमि पावजहों ॥२॥ मरहु चवन्तु णिवारि रामें ||४|| से गय ते तुरत से रहवर ||५|| सा समुद्र -परिस- वसुन्धर || ६ || तं श्रामीयर चामर - वासणु ॥७॥ लय वित करम्ति घरे पेसणु' ॥ ८॥