SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ परिज [ - ] ८ जिह ण ताठ सिह हउ मिण कालें। रज्जु गिधु धिगत्यहूँ छन्तहूँ । चण्ड ताड जेण परिहरियहूँ । ह पुणु कु-पुरिसु दुण्णय-वन्त । मुनि पायें चिरु लइड अगहु पर नामोहिउ मोहण जाले ॥१॥ घरु परियणुधणु पुस- कलई || २ || तुम गामिया दुम्बरियाँ || ३ || अज वि अच्छमि विसयासतद' ॥४॥ 'रामागमणे होमि अ-परिगहु ॥ ५॥ जहिं जे दिवसेतिणि वि निरिह हुँ । जहि जे दिवस यि गय प हूँ । ६ । सहजं जो "दुट्ट-सहाउ कसाएं लइयउ | अग्ग-महिसि करें जणय सुय अप्पुणु पाहि सयक महि तहूँ हूँ तं जें सिंहासणु । मामण्डलु सुग्गी विदीसणु । ठाएं कब सच् किर जम्पिङ । वहीं भवियहाँ सुखि पर मरणं । ते विविति भदारा रजहों । तो जिय-जाउहाण सङ्ग्रामें । 'अज्जु वि तुहुँ जे राज से किक्कर | ते सामन्त अम्हें से मायर । को अ-सजणु ॥७॥ रामाममें जि भरहु परुष उस धत्ता मन्तित्तणु देवि जणदणहों । हरहु जामि तवोषण हों ||१|| [ ९ ] तुम्हाँ षणु महु रज्जु समप्पि ॥ १ ॥ अहद घोर-वीर सब चरणे ॥२॥ एवहिं जामि यमि पावजहों ॥२॥ मरहु चवन्तु णिवारि रामें ||४|| से गय ते तुरत से रहवर ||५|| सा समुद्र -परिस- वसुन्धर || ६ || तं श्रामीयर चामर - वासणु ॥७॥ लय वित करम्ति घरे पेसणु' ॥ ८॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy