________________
एक्कूणासीमो संधि
१०१ द्वारा, ब्राह्मणों से उच्चरित वेदों-द्वारा, ऋक् यजुः और सामवदोंके पाठ द्वारा, नट, कवि, कत्थक, छत्र और भाटों द्वारा, रस्सीपर चढ़नेवाले नटोंके प्रदर्शन-द्वारा, पण्डितों से उच्चरित उत्साह गीतों-द्वारा, बयालीस स्वरों की ध्वनियों-दारा, विचित्र मल्लफोड़ स्वरों और इन्द्र ताल उत्पाद्य चित्रों द्वारा, गाते हुए गायकों और नृत्यकारोंके समूह-द्वारा, बाँसुरी बजाते हुए डोमोंके द्वारा प्रवेश करते हुए रामका स्वागत किया गया। रामके नगरमें प्रवेश करते ही केवल फला और विज्ञानका ही प्रदर्शन नहीं हुमा, बरन् आकाशमें देवताओंने दुन्दुभियाँ बजायीं और अप्सराओंने मंगल गीचोंका गान किया ।। १-२ ।।
[५] राम और लक्ष्मणके नगरमें प्रवेश करनेपर, श्रेष्ठ नागरिकाओंपर भिन्न-भिन्न प्रतिक्रिया हुई। एक बोली, "यह क्या वे राम है जो सीतादेवीके साथ आते हुए दूसरे विधाताके समान जान पड़ते है, यह क्या लक्षणोंसे विशिष्ट वही लक्ष्मण हैं, जिन्होंने युद्ध रावणका वध किया, हे बहन, क्या यह वही राजा विभीषण हैं जो विनयशील और बहुत विद्वान सुने जाते हैं। हे सस्त्री, यह वही सुप्रीव है जो किष्किंधा नगरका प्रशासफ है। यह बही भामण्डल विद्याधर है, मानो देवताओंमें श्रेष्ठ इन्द्र ही हो। यह नामसे वही विराधित है जिसने महायुद्ध में दूषणपर विजय प्राप्त की। यह वही हनुमान है जिसने वन उजाड़ा, रामको राज्य दिया, और स्वयं सेवक बना," जबतक नागरिकाएँ इस प्रकार नाम ले रही थी, तबतक उन तीनोंने राजकुलमें प्रवेश किया। लक्ष्मण गोरे थे राम श्याम, और सीतादेवीका रंग सुनहला था। वह ऐसी लगती, मानो हिमगिरि और नये मेघों के बीच बिजली चमक रही हो ।। १-१०॥