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पडमचरिट चम्मण-यणुग्धोस्स्यि-वेऍहि। कडिय-अजु-रिउ-सामा-भेहि ॥४॥ णड-कह-कहय-छत्त-फम्फाहि। लक्षिय-वसाटण-विहावे हि ।।५।। मटेहि प्रयणुच्छाह पढन्तेहि। वायालीस वि सर सुमरन्तहिं ।।६।। मालपफोरण-सरे हि विधि हि । इन्दयाल उपाइय-चिहि ॥७॥ मन्द-फेन्द-वन्द हि कुरन्त हिं। डोम्बे हि वंसारहण करन्तहि ॥८॥
पत्ता पुरै पइसन्तहाँ राहवहाँ ण कला-विण्णाण केवलई । दुन्दुहितापिय सुर हि णहँ अच्छरेंहि मि गीय मङ्गलहै ॥९॥
पुरै पइसी सम-नारायणे। जाय वोल वस्णायरिया-यणे ।।३।। 'हु सो समु जासु विहि वीयउ । दोसइ गहॅणावन्तु स-सीय ॥२॥ पंहु सो छक्षण लक्सपावसड । जेय दसाणा णिहष्ट मिडन्त ॥३॥ पहु सो वहिणि विहीसण-राणउ । सुबइ विणयवस्तु पहु-जागड ॥१॥ ऍहु सो सहि सुरंगीबु सुणिजह । गिरि-किक्किन्ध-गयर जो मुझइ ॥५॥ ऍहु सो विज्लाहरु मामादलु। में सुर सामिसालु भाहण्डल ॥६|| ऍहु सो सहि गामेण विराहिस । दूसणु क्षेण महाहवे साहिउ । ऍहु सो हणुउ जेण वणु मग्गज । रामही दिण्णु रज्जु भावग्गउ ॥८॥ जाम णयह णाम-ग्गहणायउ। तिणि वि ताष पट्टहँ राजस्लु ॥९॥
पत्ता
चल धवल हरि सामलल प्प हिमगिरि-णव-जवाहरद
बहदेहि सुवष्ण-वण्णु हरह । अम्मन्नर विजुल विस्फुरह ॥१०॥