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एक्कूणासीमो संधि
उसके माथेको चूमा, सौ बार अपनी गोदमें लिया और सौ बार उसे अपने अनुचरोंको दिखाया | सौ बार उन्होंने आशीर्वाद दिया, आनन्दके आँसुओंसे दोनों वर्षाके समान भीग गये। रामने कहा, "हे भाई, तुम स्वच्छन्द इस राज्यका भोग करो, प्रसन्न रहो फलो-फूलो जियो और बढ़ते रहो, तुम्हारे याहुपाशमें लक्ष्मीका निवास हो,” यह कहकर प्रसिद्ध नाम रामने उसे अपने पुष्पक विमानमें चढ़ा लिया । राजा भरत, राम, लक्ष्मण और सीताने एक साथ अयोध्यामें इस प्रकार प्रवेश किया मानो धर्म, पुण्य, व्यवसाय और लक्ष्मीने एक साथ प्रवेश किया हो ॥ १-९॥
[३] नन्द, सुनन्द, भद्रजय, विजय आदि तीनों लोकोंको निनादित करनेवाड़े सूर्य मल रते। मेघ, महन्द तथा समुद्र निर्घोष, नन्दिधोष, जयघोष, सुघोष, शिवसंजीवन, जीवनिनाद्र, वर्धन, वर्धमान और माहेन्द्र भी। सुन्दर-शान्ति, सोम,संगीतक, नन्दावर्त, कर्ण, रमणीयक, गम्भीर, पुण्यपवित्र आदि और भी दूसरे बाथ बज उठे । अमरि, भम्भा, भेरी, वमाल, मर्दल, नन्दी, मृदंग-ताल, करड़ा-करड़, मृदंग ढक्का, काइल, टिबिल, ढका, प्रतिढक्का, दढिय, प्रणव, तणव, दडि, दर्दुर, समरुक, गुञ्जा, रक्षा, बन्धुर आदि वाथ बजे। निशाचरनगरी लंकासे अट्ठारह अक्षौहिणी सेना लायी गयी। और तूर और तूर्य आदि कई करोड़ थे, सन्हें कौन जान सकता था ।। १-९ ।।
[४] मंगल धवल उत्साह आदि गानों के प्रयोग-द्वारा,जयजयकारकी ध्वनि-द्वारा,अतिशय आरती तथा आशीर्वचनों द्वारा, तोरण समूह और दृश्योंके निर्माण-द्वारा, दही, दूर्वा, दर्पण, और जल कलशों-द्वारा, मोतियोंकी रांगोली और नये धान्यों.