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पचमचरित
सय-वारउ उच्छों सहायिउ। सय-वारउ भिन्नहुँ दरिसाविउ ॥४॥ सय-बारउ दिण्णउ भासीसउ। वरिस-सरिस-हरिसंसु-विमीसा ॥११ 'भुक्षि सहोयर रज्जु गिरकुसु । मन्द बद्ध जय जीव चिराउसु ।।६॥ भच्छा वीर-च्छि भुव-दगडएँ। गिवसड वसुह तुहार खण्डएँ' ॥७॥ एम भणेधि पगासिय-णामें । पुष्फ विमाणे चढाविउ रामें 1॥
पत्ता मरह-गराहिचु दासरहि लक्खणु वइदेहि णिविट्ठाई। धम्म पुण्णु वषसाउ सिप णं मिलेंषि अउ पाहा ॥१॥
[५] सूरह हयाँ गिहिय-ति-जयई। णन्द-सुणन्द-मद-जय-विजयाँ ।।। मेह मइन्द-समुर-णिपोस। णदिघोस-जयघोस-सुधोसइँ ॥२॥ सिव-संजीवण-जीवणिगा। बद्धण-बदमाण-माहेन्द ॥३॥ मुन्दर-सम्ति-सोम-सङ्गीप। णन्दावस-कण्ण-रमणीप ॥४॥ गहिर पसपणपुण्ण-पवितहूँ। अवरा वि बहुविद-वाहच ।।५।। मल्लरिभम्मा भरि-धमालहै। महल-गन्दि-मन्दा-ताला || कारा-काग्इ मउम्दा-ठक.। काल-टिविक-ठाक-पविता ।।। ड्डिय-पणव-तणव-दरि-ददुर । मरूम-गुजा-रक्षा वन्पुर ।।८।।
पत्ता अट्ठारह मक्खोहणित रयणीयर-गयरहों भाणियड । अवरहुँ तूरहूँ रिय? का कोरिड किं परियाणियउ ॥९॥
[ ] अम-अय-कार करतेहि लोएँ हिं। मङ्गक-घचलुच्छाह-पभोहि ॥१॥ अहहष-सेलासीस-सहासें हिं। तोरण-णिवह-छहा-पिण्णासें हिं ॥२॥ दहि-दोषा-दष्पग-जन-कको हि। मोतिय-रकापक्षिण-कणिसे हि