________________
एक्कूणासीमो संधि
उभासीवीं सन्धि तब भरत सीता, राम और लक्ष्मणका मुखचन्द्र देखनेके लिए गये। उन्होंने देखा मानो बुद्धि, व्यवसाय और भाग्यका एक जगह सुन्दर संगम हो गया हो ।
[१] रामके आगमनपर भरतने कूच किया। वह अश्व, गज, रथ और राजाओंसे घिरा हुआ था। दूसरी जगह सेना. के साथ शत्रुघ्न भी जा रहा था, खून असं और वाहनपर बैठा हुआ। सैकड़ों छन्न और विमान साथ चल रहे थे। उनसे आकाशमें सूर्यकी किरणं ढक गयीं। करोड़ोंकी संख्या में नगाड़े बज उठे, आकाशमें भी देवताओंने नगाड़े बजाये | समस्त जनपद मुब्ध हो उठा। रथ, अश्व और हाथियोंके कारण रास्ता ही नहीं मिलता था। एक दूसरेसे भिड़कर लोग गिर पड़ते थे। यानोंमें रेलपेल मच गयो। तब राजा भरत कर्णतालसे भौंरोंको उड़ाते हुए महागजसे उतर पड़ा। राम और लक्ष्मण भी सीताके साथ अपने पुष्पक विमानसे उतर पड़े,
और भी दूसरे राजा, अपने अपने यानोंसे नीचे उतर आये। कैकेयीके पुत्र भरतने नमस्कार करते हुए रामके चरणोपर अपना सिर रख दिया। उस समय ऐसा लगा, मानो लालकमलंकि बीच नीलकमल रखा हुआ हो ।। १-२॥
[२] जिसप्रकार भरतने रामको प्रणाम किया, उसी प्रकार, उसने कुमार लक्ष्मण और हिलते-खुलते हारवाले अन्तःपुरको भी किया। तब बलोद्धत रामने भरतको पुकारा, और अपने दोनों बाहु फैलाकर छोटे भाईको अंकमें भर लिया और सौ बार