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[ ७६. एक्कूणासीमो सन्धि ]
पउमचरिउ
सीय राम लक्खण
मुह-यन्द- णिहालउ भरहु गउ ।
बुद्धि वा बिहिह णं पुण्ण-गिव सवदम्मुहउ ||
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रामागमण मर पीसरियड | अण्णेतहें सत्तुहणुस । छत्त-विभाण-सहास धरियहूँ । तूर हूँ हयहँ कोढि परिमाण हि । जणवड गिरवसेसु संमइ । विडिय एकमेक भिमाणेहिं । कण्णताल हय-महुअर विन्दहों।
हम-गय-रह गरिन्द-परिस्थि ॥१॥
रघुपाक्ष -साधु २ अम्बरें रवि किरण हूँ अन्तरियाँ ॥ ३ ॥ दुन्दुहि दिष्ण गयण गवाणें हिं ॥ ४ ॥ रह-गय- सुरपे हि मग्गु ण लडभड़ ॥५॥ पेलादेखि जाय जम्पा हि || शा
मरहा हिउ उत्तरि गइन्दों ॥७॥ हरि-वलस-महिल पुष्क- विमाणहीं। अवर वि णश्च निय-निय जाण हाँ | |
केकय-सुपेण णमन्तरण दीसह विहिं रह
घत्ता
सि रहुबइ-पळणसरे क्रियट । पीलुप्पल म णाएँ थियड ॥ ९ ॥
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वह राम सिंह णमि कुमारों । अन्तेरहों पघोकिरदारों ॥ १ ॥
लें] वलद्धरेण कारेंवि ।
साहसनिय भुवदण्ड पसारे वि ॥२॥ मऍ चुम्बित पुणु सय बारव ॥३॥
अवरुण्डिड भारु बहुषारत ।