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महरारंभी संत्रि
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यह वह स्थान तुम देख रही हो, जहाँ जिसपद्माके पिता रहते हैं। सुन्दर चरितवाला यह वह प्रदेश है जहाँ राजा अतिवीरको पकड़ा गया था । हे सुन्दरी, यह वह जयन्तपुर नगर है, जहाँ वनमाला मिली थी और जो लक्ष्मणरूपी वृक्षपर सुन्दरलताके समान चढ़ गयी थी ॥ १-२ ॥
[२०] यह रही गुणोंसे गौरवान्वित रामनगरी, जिसका निर्माण पूतनायक्षने किया था। यह कपिलका अरुण नामका गाँव है, जहाँ उसने स्वयं धक्का खाया था । हे सुन्दरी, यह सामने विन्ध्यानगरी दिखाई दे रही है, जहाँ हमने शत्रु बालिखिल्यको अपने अधीन किया था। हे वैदेही, यह कूबरनगर है, जहाँ कल्याणमाला नर रूपमें रह रही थी। यह वह देशपुर है जिसमें लक्ष्मणने भ्रमण किया था, और सिंहोदररूपी सिंहका दमन किया था । यह वह गम्भीर नदी है, जिसमें तुम मेरी हथेलीपर चढ़ी थीं। वह सामने अयोध्यानगरी दिखाई दे रही है, जिसका अभी-अभी विभीषणने स्वर्णसे निर्माण करवाया है। फहराते हुए धवल ध्वजपटोंसे महान् अयोध्यानगरको हे प्रिये, तुम देखो। एक तो जन्मभूमि माँके समान होती है, दूसरे वह जिनमन्दिरोंसे शोभित थी। सोवा, राम और लक्ष्मणने अपने हाथ जोड़कर अयोध्यानगरीकी दूरसे ही वन्दना की ।। १-९ ॥