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________________ पउमचरित इह सो उपसु णियरिछपा। जियपोम-जणणु जहि अछियड ॥७॥ हु देसु पसेसु वि चार-परिंड । अहीर-णराहिउ जहि धरित |६|| घन्ता तं सुन्दरि एउ' जियन्तउरु जहि वणमाल समावडिय । लक्सिजइ ळकरवण-पायवहाँ अहिणव बेलि गाह् चरिय ||२|| [२०] रामउरि एक गुण-गारविय जा पूयण-जएवं कारविय ॥१॥ एंडु अरुणु गामु कविकहाँ सणउ । अहिं गलथल्लाविड अप्पणउ ||२॥ सोसाइ सुन्दरि पिकाइरि। अहिं सिकिस पालि धइरि।। साइतेहि एट अलवर-णयर । कल्लाणमाल जहि जाण ॥४। ऐं दसउरु यहि लारपशु ममिउ। सोहोपर-सोहु समरें दमिउ ।।५।। ऍह सा गम्मीर समावरिय। जहिं महु कर-पल्लवे सुई चडिय ॥६॥ जुहु दीसह सभ्यु सुषण्णमठ। णिम्मविउ विहीसणे णं णवउ ॥७ भूपन्त-धाम-धयवर-पर। पिएँ पेक्तु अउज्झाउरि-णयह ।।८।। घता किर जम्म-भूमि जणगोर सम भण्णु घिसिप जिणहरहि । पुरि बन्दिय सिरे सई भुव करें वि जशप-तणय-हरि-इलहरेंहि ५९॥
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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