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पचमचरित
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गउ सा महा-रिसि मण-गमणु । प्रिय-वेओहामिय-स्वर-पवणु ॥१॥ परिभमिर-ममर-प्रकार-वरें। गोलप्पल- म-धि- . तर-सीर-लयाहरे कुसुमहरें। जहि अङ्गट कोलइ कमल-सरें ॥३॥ तिवण-परिभमिर-पियारऍण । तहिं थाधि पुच्छिउ णारऍण 111 'कि कुसलु कुमार विपक्षणही। वरदेहिहें समहाँ लक्षणहों' ॥५|| तेण वि जिय-समल-महाहनहीं। पहसारित मन्दिर राहवहाँ ॥३॥ हलहरेंस वि अम्भुस्थाणु किउ। 'आगमणु का है' एत्तिउ चविड ।।। ताबसेण धुत्त 'तड माइयाँ। बायउ पासही अपराइयहें ॥८॥ सा तुम्ह विओएं दुम्मणिय । अच्छा हरिणि व बुग्णाणणिय ॥९॥
घत्ता
सुहु एक्कू वि दिवसुण जाणियउ प. वण-वासु एवरणऍण । अच्छइ कन्दन्ति सन्वेणिय पन्दिणि बिह विणु तणज' ॥१०॥
[१७] उम्माहिउ तं णिमुणेवि वलु। बोष्डइ मजलाविय-मुह-कमलु ॥1॥ 'अहो मह-रिसि सुन्दरु कहिउ परे । जह अन्जु कल्ले णउ दिद मई ॥२४ तो सण-साल-तिसाइयह। उहन्ति पाण अपराइयम् ॥३॥ णिय-जम्मभूमि अणणि' सहिय । समाँ वि होइ आइ-बुरुकहिय ।।।। छह जामि विहीसण णियय-बरु । पर मुऍवि अषणु को सहइ भरू । सम्बरिसइँ एक्क-दिवस-समई। घवगयइँ सुरिन्द-सुहोवमइ ॥६॥ लम्मइ पमाणु सायर-जलहों। लमह पमाणु वागर-वलहौँ ।।७n कम्मइ पमाणु सक्षम-सरहों। लन्मइ पमाणु दिणपर-फाहाँ ॥८॥