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पउमचरिउ
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अहिउ विहीण आढविउ ।
सुग्गी विराहित नीलु लु
भामण्डल क एवि घिउ ॥१॥ दहिहु महिन्दु मारु पबलु ॥१॥ मल्हटिय फल्स विहीसही ॥३॥ बहु-दिवस हिं राम- जण
हम तेहि सुद्द दंसणहौं । सधैं बद्धु पट्टु राहु-णन्दणेश ।
॥४॥
जाउ विमाणित ण माणियउ । ताउ बि तर्हि तुरिउ पराणियउ ||५||
सुर-बहुमत साह भर । कल्काणमाल वणमलि सह । कहिमुहणदणित |
५६
सीडोयर-वजयण्ण-सुश्रउ ॥ ६॥
जियपोम सोम जिण-पडिम जिह ॥ ७ ॥ ससिवद्ध-णयणाणन्दणिउ ||4||
सहि काले सुकोसल-राणि हें । रति न्दि पहु जो मन्तिय हैं । घर-पर्णे वायसु कुल कुलइ । रिसि णारउ ताब पराइयड | तेण विणिय वइयरु विमलु कउ वन्दन्तों से तिरथ सयहूँ । पुणु तेथों लङ्काणयरि गड | पडि पुच्च विदेहु पराट्रय |
धत्ता
बहु-बिन्दहुँ आयएँ अवरइ मि अच्क्रन्तहँ वळणारायणह
सच्चहूँ तर्हि जे समागयहूँ । as after BE गयइँ ||९||
[१५]
णन्दण-विषय-विद्दाणिय हैं ॥१॥ पन्थिय - पउत्ति पुच्छतिग्रहैं ॥ २ ॥
म 'माएँ रहुच मिल' ॥ ३ ॥ थुर पुछिउ 'केसह आइयड' ||४|| । 'परमेसरि पुम्ब विदेहें गउ || ५ ॥ सतारह वरिस वषय हूँ || ६ || जहिँ लक्खण के वरि हउ || तेवीस बरिसš आइय ॥ ८ ॥
घत्ता
णु विल्ल
देहि बहु कहिं रज्जु करम्वाइँ । छतिमाएँ हि कोयणइँ त दुक्खयमि जियन्ता हूँ ॥२॥