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अतरिम संधि
इत्यादि बधाइयो', उत्साह घबल मंगल आदि गीतों, पटुपट, शंख, मन्दल आदि वाद्यों, कवि कत्थक नट नृत्यकार आदि नृत्य-विदों, गायक-वादक आदि बन्दीजनों, नरश्रेष्ठ ब्राह्मणोंकी घोषणाओं, और भी चित्तको सन्तोष देनेवाले साधनों के साथ रामने विभीषणके घर में प्रवेश किया। यह सब देखकर रामका मन भर गया । फिर उन्होंने स्नान और आसनके साथ सुन्दर वस्त्र पहने। फिर उन्हें रावणके विशाल कोप दिखाये गये । सारा दिन इस प्रकार आतिथ्य में ही बीत गया; फिर भी उसकी सीमा नहीं थी; सूर्य भी मानो यह कहकर छिप गया कि राम, तुम सीता के साथ सुखपूर्वक सांओं ॥ १-२ ॥
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[१३] तब विभीषणने निवेदन किया, "हे आदरणीय राम, आप इस समस्त धरतीका उपभोग करें, सीता राजमहिषी बने और आप राज्यशासक, लक्ष्मण मंत्री बनें और मैं आज्ञाकारी सेवक । यह सुन्दर लेकानगरी है । यह त्रिजगभूषण महागज है, यह घरमें मुख्य पुष्पक विमान है और हाथमें यह चन्द्रहास तलवार है । ये सिंहासन, छत्र और चामर हैं, इससे शत्रुओं के विस्तार को शान्त कीजिए ।" यह सुनकर रामने कहा, "हे विभीषण! इस धरतीका उपभोग तुम्ही करो। हमारे घरमें भरत राज्य धारण करता है, जिसके लिए पिताने मावाके लिए वर दिया था। तुम्हारे घर में राज्यश्री तुम्हारी अपनी हो, आखिर तुम्हारी विदग्धा जैसी सुन्दर पत्नी भी तो है। आकाशमें देवता, धरतीपर सुमेर पर्वत, और जबतक समुद्रमें पानी है और जबतक इस धरती पर मेरी कीर्ति कायम रहती है, तबतक हे विभीषण, तुम राज करो ।। १०९ ।।