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________________ ९४ उहिँ वह मङ्गलैहि । कह-कहहिं ड-गट्टाव पहि रणार- वम्मण- घोसणं हि । मन्दिरु पसरइ विहीसह । पुणु हवणारण परिहाहि । पउमचरिउ घत्ता गठ दिवस पाहुण्णऍण कमइ तो वि पमाणु ण बिं । 'सुड्डु सुभ सीम सहुँ रहु-सुऍण' एम मवि णं हिक्कु रवि ॥ ९ ॥ तो मग बिहोसणु 'दास रहि । सीयऽग्ग-महिसि तुर्डे रज-वह । रमणीय एह लङ्काणयरि । ऍडु पुष्क - विमाणु पहाणु घरें । सिंहासण छत्त हूँ चामरहूँ । सं णिसुर्णेवि पमणइ दासरहि । महुँ घर मरहु जें रज-धक । तुम्हहुँ घरें तुज्यु जे राय-सिख । - पहिं मन्दहिं ॥ ४ ॥ गायणायण- फम्फावहिं ॥ ५ ॥ अवरहि मि चित्त परिश्रमहि ॥ ६ ॥ मजराउ मरि रहु-हाँ ॥७॥ yampado-qfmadië neu [१३] अणुहुअ भडारा सयल महि ॥ १ ॥ समिति मन्ति हउँ आपण करु ॥२॥ ऍहु तिजगविणु पचर -करि ||३|| उ चन्द्रहा करवाल करें || ४ || लइ उवसतु रिङ डामर हूँ ||५|| 'अ विहस हुँ जे महि ॥ ६ ॥ जसु जणणि सा दिष्णु वरु ||७|| म जासु विमढाए विनिय || ४ || घत्ता सुरवर महिलें मेरु-गिरि परिममइ कित्ति जरौ जान सकु जाव महा-जलु मगरहरें । वाच विद्दीसण रज्जु करें ||९|| }
SR No.090357
Book TitlePaumchariu Part 5
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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