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उहिँ वह मङ्गलैहि । कह-कहहिं ड-गट्टाव पहि
रणार- वम्मण- घोसणं हि ।
मन्दिरु पसरइ विहीसह ।
पुणु हवणारण परिहाहि ।
पउमचरिउ
घत्ता
गठ दिवस पाहुण्णऍण कमइ तो वि पमाणु ण बिं ।
'सुड्डु सुभ सीम सहुँ रहु-सुऍण' एम मवि णं हिक्कु रवि ॥ ९ ॥
तो मग बिहोसणु 'दास रहि । सीयऽग्ग-महिसि तुर्डे रज-वह । रमणीय एह लङ्काणयरि । ऍडु पुष्क - विमाणु पहाणु घरें । सिंहासण छत्त हूँ चामरहूँ ।
सं णिसुर्णेवि पमणइ दासरहि । महुँ घर मरहु जें रज-धक । तुम्हहुँ घरें तुज्यु जे राय-सिख ।
- पहिं मन्दहिं ॥ ४ ॥ गायणायण- फम्फावहिं ॥ ५ ॥ अवरहि मि चित्त परिश्रमहि ॥ ६ ॥ मजराउ मरि रहु-हाँ ॥७॥ yampado-qfmadië neu
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अणुहुअ भडारा सयल महि ॥ १ ॥ समिति मन्ति हउँ आपण करु ॥२॥ ऍहु तिजगविणु पचर -करि ||३|| उ चन्द्रहा करवाल करें || ४ || लइ उवसतु रिङ डामर हूँ ||५|| 'अ विहस हुँ जे महि ॥ ६ ॥ जसु जणणि सा दिष्णु वरु ||७|| म जासु विमढाए विनिय || ४ || घत्ता
सुरवर महिलें मेरु-गिरि परिममइ कित्ति जरौ जान सकु
जाव महा-जलु मगरहरें । वाच विद्दीसण रज्जु करें ||९||
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