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पउमचरित
पेक्सन्तु णिवाणई रावणहाँ कहि मि ण रहबह रह करह । स-कलतु स-माइ स-मिश्चयणु सन्ति-जिणालउ पइसरइ ॥९॥
[1] थुओ सन्ति गाहो।
कयक्खावराहो ॥१॥ हपाणा सक्को।
पमा-भूसियको ॥२॥ दया-मूल-धम्मो।
पण-कम्मो ॥३॥ तिलोयग्ग-गामी।
सुणासीर-सामी ॥४॥ महा-देव-देखो।
पहाणूत-सेषो ॥५॥ जरा-रोग-णासो।
असामण-भासो ।।६।। समुप्पण्ण-णाणों।
कयङ्गि-प्यमाणो ॥७॥ ति-सेवायवतो।
महा-रिवि-पत्तो ॥८॥ अणन्तो महन्तो ।
अ-कन्ती म-चिन्तो ।।९।। अ-डाहो अवाहो।
अ-छोडो अ-मोहो ॥१०॥ अ-कोहो अरोहो।
श्र-जोहो भ-मोहो ।।११।।. भन्दुक्रमो अ-मुक्खो। अ-माणो समायो ।।१२।। भ-जाणो सजाणो।
अ-णाही वि पाहो ॥१३॥
घत्ता थुइ एम करेंवि किर वीसमइ ताव पडिच्छिय-पेसणेण । स-फलत्तु स-लक्खणु स-बलु वलु णि णिय-णिलउ विहीसणण ॥१४॥
[१२] सु-वियह वियताएवि लहु। वर-जुवइहुँ दसहि सएहि सहुँ || 113 दहि-दोष-जलपखय-गहिय-कर। गय तहि जहि हलहर-चकहर ॥२॥ आसीसहि सेसहि पणवणे हि । जय-णन्द-वद्ध-पदावणे हिं ॥३॥