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________________ पासहिमो संधि [५] राषण थोड़ी ही दूर पर गया था कि उसने देखा कि कोई योद्धा अपनी पत्नीसे कह रहा है, "हिरणके समान नेत्रोंवाली हंसगति सुन्दरी, क्या तुम स्वामीके प्रसादको भूल गयीं । यह सेवा, वह चाकरी, वह अयाचित जीवनदान, मणियों से जड़िन वह ऊँचा आसन, वह मत्तगजोंके कन्धों पर चढ़ना, यह मेखला, वह कण्ठका आभूषण, वे वस्त्र और वह सत्कार । अपने हाथ से फूल और पान देना । वह भोजन और सुवासिन कचौड़ी, बह वस्त्र व भारी सोना । इसके अतिरिक्त और कई प्रसाद लंकवरके मेरे ऊपर हैं। जो इनमें से एकको भी नहीं मानता, निश्चय ही वह सात नरक में जायगा। हे रमणीय. मैं उसके उपकारका प्रतिदान युद्धमें चुकाऊँगा । रामक ऊपर मैं रंगविरंगे थर्राते तीर बरसाऊँगा ।।१-६|| [६] यह सुनकर, रावण वहाँ गया, जहाँ मन्दोदरीका पिता मय था। जालीदार गवाझके पास बैठकर, वह चुपचाप सुनने लगा कि मय अपनी पत्नीसे क्या कह रहा है । वह अपनी पत्नीसे कह रहा था, "हे प्रिये, कल मैं बहुत बड़ा जुआ (म्फर त ) खेलूंगा। भयंकर रणदात (कडित्त) रखाऊँगा और उसमें अपने अमूल्य जीवनकी बाजी लगा दूँगा। चार दिशाओंमें चतुरंग सेनाको लगा दूँगा, खलिया मिट्टीसे लकीर खीचूंगा, ( खडिया जुत्ति ), मैं शत्रुके श्रेष्ठ रथोंको आहत कर दूंगा, गज, अश्व और योधाऑमें नोभकी लहर उत्पन्न कर दंगा, तलवार रूपी पाँसा ( कत्ति ) अपने हाथ में लेकर, जयश्री की एक लम्बी लकीर खींच दूँगा। सुभदोंके धड़ोंको इकट्ठा करूंगा, और शत्रुओंको इस प्रकार दबोचूंगा कि उनके प्राण ही न रह
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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