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श्रोषन्तक जात्र परिक्रममद्द | 'सुन्दर मिग-णय मराल गई । तं पणु तं लगियड ।
तं उच्चारणमणि-त्रेयडिउ |
महल से कष्टाहरण | तं फुल सह सम्बो वीरु मार चामीयहाँ ।
हुँज एकुण आवड
पउमचरिउ
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तहाँ जबगार करते लावधि वण- विवित्त
संणिसुर्णेवि गड राखणु तेल । जालगवाएँ थिउ एक्कन्तएँ । "घ विहाण कहूँ एड करें | दारुणु रण-कसिण्डेउ | चाउरजु मलु ाउ धुर देवी । पडिक
रहचर सादेवा । करें कफि करंबी | सुरुङ-कवन्धु लेष विडेव ।
अग्ग
सहूँ कन्त को विवी च ॥ १ ॥ नं पहु-साठ किं बीसर तं जीवि दाणु अमयि
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नं मत्त गइन् खन्धे चडिउ
तं चेलि में जं समाद्दणु ॥ ५ ॥
मं असणु सुपरिमलुक अवर वि पसाय सो में
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॥३॥
॥ ४ ॥
॥ ६ ॥
सरहों ॥ ७ ॥
वें
घता
भिक कमि महाहवें ।
थरहरन्त सर राहवें ॥९॥
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मन्दोर-जमेर मंड जेस है ॥ ॥ णिन्तु सो
कन्त ऍ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥
तं वड् प्फर- जूड र जाविध विसरिंसु खलु षेव || २६॥ जापडिया जुति एव ||५| हयगय जोह छोड़ पाडेका ॥ ६ ॥ जयमिरिह जीवनाहि रिउ ग्रहणु लएवउ |२८||
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