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________________ वासहिमोनि मानो सिंहों का झुण्ड हो । इसी बीच, युद्धप्रांगण में सियार बोलने लगा, मानो वह संकेतमें कह रहा था “हे रावण, तुम्हारे लिए राम अजेय हैं" ॥ १-२॥ [२] कहीं पर सियारिन करुण क्रन्दन कर रही थी "यदि युद्ध आज श्रोड़ी देर और हो, तो अच्छा है।" कहीं पर एक और सियारिन छिपी हुई थी, मानो वह देख रही थी कि कौन मरा हुआ है, और कौन जीवित है। एक और जगह, शृगाली एक सुभट पर कूद पड़ी, मानो वह दूसरेके पीठ पीछे भोजन करना चाहती थी । कोई सियार किसी सुभटका मुखकमल इस प्रकार चूम रहा था, मानो प्रौद विलासिनीका अधरदल हो।" कहीं पर सियार योद्धाका हृदय निकालता और फिर उसे छोड़ देता, यह जानकर कि वह दूसरेका है। कहीं युद्ध में भूतोंका संघर्ष छिड़ा हुआ था। एक कहता, "सिर तुम्हारा और धड़ मेरा है।" एक दूसरा किसी और से भिड़ जाता और कहता, "यह पूरा योद्धा मुझे दो।" तब दूसरा कहता, "नहीं इसका एक दुकड़ा भी नहीं दूंगा, यह हाथी तो मेरे लिए एक कौर (ग्रास) होगा" भूत-प्रेतोंमें इस प्रकार भोजनलीला मची हुई थी। राम का मुख तेजसे उद्दीन था । सीता मन ही मन संतुष्ट थी। कंबल निशाचरोकी सेना में, अमंगल दिखाई दे रहा था ॥१-६। [३] निशाचरोने जब सुना कि हस्त और प्रहस्त अब इस दुनिया में नहीं हैं, नल और नीलके अस्त्रोंसे उनका विनाश हो गया, तो जैसे उनमें प्रलयकाल मच गया, लंका नगरी में हाहाकार होने लगा। उस समय एसा लगता था मानो पाझ-समूह आक्रंदन कर रहा हो, या पहाड़ पर गाज (वन) आ गिरी हो।" एक भी ऐसा घर नहीं था जिसमें धन्या नहीं रो रही हो, वह
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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