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पउमचरित
सो पाउ मडु जासु ण अझं वणु। सो पड पहु जो णउ विमण-मणु ॥५॥ सो ण रहु जो ण विकस्पियर। सो गड हउ जो ण वि सर मरिड ।।८।। सो प वि गउ जासु ण असि-पहरु । सो ण यि हरि जी भभग्ग-णहरु || 15 जण एम कणन्त परिट्रियाएँ। दुक्खाउरें णिहा-वसिकियएँ॥॥
घत्ता
अन्दर पतिरपणे पुर पच्छपण-सरीरू
विभाहरपरमेसरु। ममइ गाई जोगेसरु ॥२॥
पप्फुल्लिय-कुक्लप-दस-यणु। करवाल-भयङ्करु दश्वयणु ॥१॥ आहिण्डद रगिहि घरेण घर। पैकरतहुँ को केहउ चचह णरु ॥२॥ पइमद अयम्त-मणोहर । पवर वर-कामिणि-रङ्कहरई ।।।। जहिं सुरयारम्भु गट्ट-सरिसु । जिह तं तिहति)वविय-हरिसु॥३॥ सिंह तं सिह भू-मञ्जर-बयणु । जिहतं तिह चल-चालिय-यणु ॥५॥ निहतं तिह आयडिय-णहरु। जिह २ तिह उग्गाभिष-पहरु जिह तं तिह गल-काम्मीर-सरु । जिह तं तिह दरिसिय-अङ्गहरूमा सिह सं तिह करण-बन्ध-पउरु। जिस तं विद्ध छन्द-सह-गहिरु ।
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घत्ता
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पाधि सुरपारम्भु सांब सरेवि दसासु
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जहाँ भणुहरमाण । परिणिन्दई अप्पाणउ ॥१॥