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पउमधरिट
नाव रणङ्गण-मझ 'शरण दुज्ज राम
धत्ता पुणु पुणु सिब फेबारइ । गाइँ समासा वारइ ।।५।।
कत्थ वि सिम का वि कलुगु लवइ । 'रणु धोबउ जाइ अण्णुवि बह' ।। ।। करथ वि सिव का त्रि समल्लियइ । जोभइ 'को मुड को जियई' ॥२॥ कत्थ वि सिव सुबडहाँ डीण सिर । विवरोक्षएँ अग्णाएँ भुत्ति करें ॥३॥ कन्ध बि सिव चुम्बद मुह-कमल । पं पोट-विलासिणि अहर-दलु ॥ ३ ॥ कस्थ नि सिक महहाँ लेइ हियउ । पुणु मलाई 'मरु अग्ण हिस' ॥५॥ कत्थ वि रण भूअहुँ कलहणउ । 'सिरु सुज्नु कवन्धु म त गर' ॥६॥ अफिमदइ अण्णु अण्ण सहुँ । 'उ मड्ड आवग्गउ हि म ॥७॥ मपणे चुचाइ 'खण्ट्स वि पण तउ । छुड एकु गामु महु होउ गर' ॥६॥
घत्ता
भूभहुँ मोअण-लील सीयहँ मणे परिओसु
रामह) वयणु समुज्जलु । णिसिपर-वलहाँ अमङ्गल ॥९॥
जणिसुणित हत्थु पहाथु हर। तं पलय-काल ओवस्थिय । गं पमिखउलंण विमुक रडि। सं णड धह जेस्थु पा स्वइ धण।
पल-गील-सरें हिं तम्बार गट ।।। पुरै हाहाकारु समुस्थियड ॥२॥
णिवरिय महिहर-सिहर तडि.. उम्मिय-कर धाहाविय-बयण ॥४॥