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________________ मदिम संधि J [४] वीरश्रेष्ठ हनुमान, यह कहकर, पद्मप्रभ विमान में जाकर बैठ गया । इस अवसर पर सुमीव भी विरुद्ध हो उठा । रोपसे भरकर भामण्डल भी तैयारी करने लगा । चारों हंसविमान सजा दिये गये, जो जिनवर भवनों के समान थे । वे विमान, सिद्ध-स्थानोंकी तरह गतरज ( पाप और धूलसे रहित ) थे कामदेवके बाणों की भाँति, भंगजन ( मनुष्योंको विचलित कर देनेवाले ) थे। उनके शिखर, पहाड़ों की चोटियोंके समान सुन्दर कान्तिमय थे । वे किंकिणी घरघर और घण्टोंके स्वरोंसे निनादित थे । उसमें जड़ित मुक्तामालाओंकी भौरे चूम रहे थे। उन विमानोंके कमशः नाम थे - विद्युत्प्रभ मेघप्रभ, रविप्रभ और शशिप्रभ। पहले दो, विभीषणने राम और लक्ष्मण के लिए भेजे थे, और बाकी दो अपने लिए रख छोड़े थे। जिन भगवान् की जय बोलकर विभीषण विमानपर चढ़ गया, वह विभीषण जो भयभीत लोगोंको अभय प्रदान करनेवाला था । विभीषण, भयहीन सेनाके सम्मुख, ऐसे खड़ा हो गया, मानो व्याकरणके सम्मुख छद्दों समास आ खड़े हुए हों ||१२|| [4] युद्धमें अजेय कितने ही योद्धा तैयार हो गये । कितने ही योद्धाओंके ध्वजपर भामण्डल आदित्य और चन्द्रमा के चिह्न अंकित थे। कितनोंके ध्वजोंपर, श्री और शंखोंसे ढके हुए कलश अंकित थे। कितने ही ध्वजोंपर हंस, कलहंस और क्रौंच पक्षी अंकित थे । किन्हीं पताकाओंपर व्याघ्र, मातंग और सिंह अंकित थे। कितनी ही पताकाओंफर खर, तुरंग, विषमेष और महिष अंकित थे। किन्हीं ध्वजोंपर शश, सम्भ, सारंग और रीछ अंकित थे। किन्हीं ध्वजोंपर साँप, नकुल, मृग, मोर और गरुड़ अंकित थे। किन्हीं ध्वजोंपर शिव, शाण, श्रृगाल
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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