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________________ ५४ पवनचरि एम भणेवि वीर - चूडामणि । तहि अवस सुग्गी विरुझ । सजिया च हंस- त्रिमा हूँ | गय-श्याई णं सिद्ध था । मन्दर-सेल-सिहर-सच्चाय पुरउ परिडिय णं धुर-घोरिय [ 0 ] ४ पसह किमाथि पाणि | 15 भामण्डलु सरोसु सगाइ ॥२॥ जिणवर-भवग्रहों अणुहरमाणहूँ ||३२|| मङ्ग-जग कुसुमहों वाणहूँ ॥ २ ॥ किङ्किणि घरघर- घण्टा गाय ॥५॥ अलि- मुहलिय-मुत्ताहरु- दामहूँ । हर पवियहँ । जिणु जयकारें वि चडि सिणु । जो सय सय-जीच मम्मी विज्जु-मेह-रवि-रूसिपह- गाइँ ॥६॥ अमाण कारण विषहूँ ||७|| || ( मतमायां णाम छन्दो ) छत्ता सेष्ण मय परिहरणहाँ । छवि समास वायरणहीं ॥९॥ [ ५ ] के त्रिष्णद समरङ्गणे तुजया । के वि भामाश्च चन्द्रद्रया ॥१३ के वि सिरिस - आवरिय कलस द्वया । के वि कारण्ड-कलहंस-को-या ॥२ के यि मसीहया । के वि सस सरह सारक्र-रिष्द्धन्तथा । के त्रि सिव-साण-गोमाज- पमय दया के विखर-य-विलमेस - महिस- दया के वि अहि-उल-मय मोर गरुडया के बि घण-विज्जु-तरु-कमल-कुलिसद्वया | i I
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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