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________________ सट्टमो मंधि गाम्नुकुमार नः कस पार विसने वीरोंका संहार करनेवाले सूर्यहास खङ्गको अपने वश में कर लिया था, जिसने खरदृषण और विझरके सिर काट डाले थे, और जिसने कोटिशिलाको अपने निरपर उठा लिया था। लक्ष्माणका दारीर रोमानित हो उठा। वह मन-ही-मन क्रुद्ध हो कर, तैयारी करने लगा। जब वह रावणकी सेनाके बारे में सोच रहा था तो ऐसा लगा मानो वह अपनी दृष्टि में उसकी समूची सेनाको माप रहा हो । भला जिस लक्ष्मणके कृशोदरमें समूची दुनिया, एक छोटेसे जकी भाँति हो, उसके विशाल नेत्रोंमें रावणकी सेनाको क्या बिसात थी ।।१-२॥ [३] इस अवसरपर उसने भी जरा देर नहीं की, वह तैयार होने लगा।वह हनुमान जिसने युद्ध में, इन्द्र और वैजयन्त को पकड़ लिया था, वह हनुमान, जिसने पिसाहित कन्याओंके उपसर्गको दूर किया था । जो आशालीविद्याके लिए विनाश काल था, जो घनायुध रूपी वनके लिए अग्निज्वाल था। जिसने लंकासुन्दरीके स्तनों का मर्दन किया था और जिसने नन्दनवनको उजाड़ डाला था, जो राक्षसोंकी सेनाके लिए सन्निपात था, जो अनयकुमार के लिए यमराज था, जिसने तोयद वाहनकी सेनाका काम तमाम किया था, जिसने नागपाझके टुकड़े-टुकड़े कर दिये थे, जिसने निशाचरोंके स्वामी श्रेष्ठको विमुख कर दिया था, जो रावण के प्रासादके लिए प्रलयकाल था, यशका लालचो जो अकेला वीर था, वह हनुमान भी सहसा सिहर उठा | रावणकी सेनाको देखकर, वह बारबार उछल रहा था, और कह रहा था, आज मैं स्वेच्छासे यमराजको भोजन दूंगा ॥१-६।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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