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अामा मोति हो गया। वह कौन है, जिसके ऊपर पैर रखा गया। वह कौन है जिसके कारण सैकड़ों घर बरबाद हुए। वह कौन है, जिसके कारण घरमें भेद हुआ । वह कौन है, जिसके प्राणीका कल अन्त होकर रहेगा।" यह सुनकर भयसे डरावना
और क्रोधसे भरकर रावण अंगद पर उसी प्रकार टूट पड़ा जिस प्रकार नखोंसे भयंकर सिंह अपनी अयाल उठाकर महागजपर टूट पड़ता है ।। १-- ।।
[१३] "मेरे सम्मुख भटनगृह क्या कर सकता है, युद्ध में मुझसे देवता भी भय ग्वाते हैं। जब मैं दायें हाथमें तलवार निकाल लेता हूँ तो समम्त त्रिलोकमें, मेरी समानता कौन कर सकता है ? क्या वाण, पवन, वैश्रवण या कातिकेय ? क्या विष्णु ब्रह्मा-शिव-नागदा या पन्द्र ? यदि कहीं शिव युद्ध में धोखा खा गये, तो बड़ा कण प्रसंग होगा, कहीं ऐसा न हो कि इससे बेचारी गौरीपर आघात पहुँचे। कहीं, विशालबुद्धि विधाता धोखा खा गये, तो ब्रह्महत्याकी शुद्धि मैं कहाँ करेगा! यदि यम जनता का नाश करने में चूक गया और मेरे हाथों भरा गया, तो इतना बड़ा पाप कौन अपने माथे पर लेगा, मृगधारण करने में यदि चन्द्रमा चूक गया तो फिर रात में प्रकाश कौन करेगा: यदि मैं अन्धकार दूर करनेवाले सूर्यको तपाता हूँ तो यह भी ठीक नहीं, क्योंकि यह पाँचौं लोकपाल हैं ! ध्वज और रथके साथ रामको देखकर यदि मैं एक भी पग पीछे हहूँ तो मैं अत्यन्त डरावनी धकधक जलती हुई अग्निज्वालामें प्रवेश करूँ" || १-६॥
[१४] जय देवसमूहके लिए पीड़ादायक रावणने सन्धिकी बात ठुकरा दी तो इन्द्रजीतने अपने मुँहसे यह कहा, “परन्तु सन्धिका एक ही कारण हो सकता है ? राम अपने मन में