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________________ पडमचरित कि जो सो उपरि दिप पाड | कि जो सी मोडिङ घर णिहाउ ॥८॥ किं जो सो एको घर-विभेड । कि जो सो काल पाण-छेउ' ।।५।। पत्ता तंगिण वि राषणु मय-मीसावणु अमरिस कुछउ अङ्गयहाँ । उसिम-कसरु णहर-मयारु जिह पन्धमुहु महगयहाँ ।।५ ०३ [३] 'महु भगाएँ मद-पकहिं काई । सन्ति जामु रण सुर सयाई ।।१।। दाहिण करें कनिएँ चन्दहासें । मई सरिसु कवणु तिझुअणे असेसें ॥२॥ किं यरुण पवणुवइसगणु खन्दु । किं हरिहरु वम्भु फगिन्दु चम्दु ।।३।। जं चुकाइ हरु तं कलुणु भाउ । म गरिह होसहकाहि मि घाय।।४।। ज बुक्क वम्भु महन्त-युदि। संकिर दम्मणे मारिएँ पा सुन्द्रि ॥५। जं चुकाइ जम् अण-सपिणघाउ । तं को किर एत्तिड लेइ पाउ ।।६।। जं सुखद ससि सारण भरणु । तं किर स्यणि उज्जोय करणु ।।७।। जं तबह भाणु ववगय-समालु । तं किर हु पप्रमु लोयपाल |८|| घसा दिवएँ रहुणन्दगै स-धएँ स-सन्दर्गे जा एक वि पर ओसरमि । सो भय-मीसागः (१) भगधगमाञहें (१) हुभवाह-पुणे पईसरमि'॥९॥ 2. [१४] लियसिन्द-चिन्द बन्दावणेण । जं सन्धि न इच्छिय रावणेण ॥३॥ संपन्दह-मुहें गांसरिउ वा । 'पर सन्धिहें कारणु अन्धि पछु ।।२।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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