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________________ असमी संधि क्रियाकी सहायता ली जाती थी । व्याकरणकी भाँति जिसमें दूसरों ( वर्णो शत्रुओं) का कर दिया जाय पा व्याकरणकी भाँति जिसमें गण और लिङ्गसे सहायता ली जाती थी । "गुण और गौरवका स्रोत मेरा राज्य, जो तुमने खर-दूषणको दे दिया है, ठीक हैं। तुम अपना धीरज नहीं छोड़ना, शीघ्र तुम मेरे भयंकर तीरोंके सम्मुख अपने अंग मोड़ोगे । " ॥ १६ ॥ 1 २९ [१०] इस प्रसंगमें और भी जो प्रतिद्वंदी योद्धा वहाँ मौजूद थे, और जिसका जिससे वैर था, युद्ध प्रांगण में जो जिसका प्रतियोगी था. उसने भी अपने प्रतिद्वंदी को सन्देश भेजा । अंगद ( सचके सन्देश लेकर ) वहाँ पहुँचा जहाँ । रावण था। भीतर प्रवेश करते ही उसने कहना प्रारम्भ कर दिया - "हे रावण, तुम निस्सन्देह समस्त विश्व में अद्वितीय मल्ल हो, ब्रह्मा, विष्णु और महेश, तुम्हें अपने हृदयका काँटा समझते हैं। यम, कुबेर और इन्द्रका तुमने विनाश किया है। जटाओं को तुम धरतीपर लिटा देते हो । दुर्दम दानवोंका दमन करना तुम्हारा स्वभाव है, देवताओंके समूहको मलाना तुम्हारे लिए एक खेल है। बड़े-बड़े हाथियों को तुम निर्दयतासे फुचल देते हो, कैलासपर्वतकी सैकड़ों गुफाओं को तुमने न किया, तीनों लोक दिन-रात तुम्हारी सेवामें लीन हैं। इसलिए आप प्रयत्नपूर्वक सन्धि कर लें । आप विद्याधरोंके स्वामी हैं और आकाशमें विचरण करते हैं। चारणवृन्द्र और राजा निरन्तर आपकी स्तुति करते हैं। आप प्रशस्तनाम वाले राम-लक्ष्मणको सीतादेवी सौंप दें" ॥ १-६ ॥ [११] यह सुनकर, रावणने मुसकराकर कहा, "क्या कोई सन्धि और समासकी बात समझ सका है। लक्षणको
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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