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________________ पउमचरित वायरणु जैम परदोम-करणु । वापरणु जेम गण-लिङ्ग-सरणु मा वत्ता तं रज्जु महारउ गुणा-यउआरउ विष्णु जेम खर-दूलाई । तिह भीक म राष्ट्रहि अज समोहहि मम णारायQ मीसगहुँ' ' ॥९॥ [..] अवरो विकी वि जो ज्ञामु मल्लु । जो जसु उप्परि उवह इ सल्लु ।।३।। समरकणे जेण समाणु जासु । सन्दमउ पसिद्ध नेण ताम ॥२॥ मीसावणु रावाणु राउ जत्थु । गउ भाउ उ पहलु नेन्थु ॥३॥ 'मो मयान भुवण-पकल्ल-मल्छ । हरि-हर घराणण- हिय-मल्ल || जम-धागय पुरन्दर मझ्यवह। णिल्लोष्टाविय-दुग्बोट्ट-थट्ट ।।५।। दुदम-दणुबह-णिदलणसील | तिमिन्द-निन्द-पान्द-लील ।।।। थिर-थोर-हथि-णिदछुर-पवट्ठ। कहलाय-कोटि कन्दर-णि? ।।६।। दिर्चे दिवे किय-तइलोकक-सेव । मन्धाशु पयाँ करहि देव ॥८॥ पत्ता विजाहर-सामिय अम्बर-गामिय धन्दिण-चिन्द-परिन्द-थु। चन्दकिय-पाम? प्लपखण-रामहुँ धुउ अप्पिन्नड जय-सुथ' ।।९।। [११] सं णिसुणेवि हसिब दसाणणेण । 'किं बुजिमय सन्धि समासु केण ।।१।। के लक्णु केण पमाणु सारु । किं बल्ल कि साहय पुषिणमा ॥२॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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