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________________ २७ अण्णासमो संधि उड़ते हुए पक्षियोंके समान दिखाई देंगी । चक्रधारी सामन्त, उसमें ऐसे जान पढ़ेंगे मानो सुंसमार जलचरोंका समूह हो । गरजते हुए, मतवाले हाथी ऐसे लगेंगे मानो मगर हाँ । तलवारोंकी चोटें मछलियोंकी कम्पन उत्पन्न करेगी। राजा लोग उसमें मगर प्राइ फरोह और कछुए होंगे। गण्डस्थलरूपी चट्टानोंसे उस प्रवाहका तट अत्यन्त विषम होगा। श्वेत चमर, बगुलोंकी कतारके समान जान पडेंगे। भामण्डलरूपी ऐसा अथाह जल प्रवाह, रेलपेल मचाता हुआ लका नगरीमें प्रवेश करेगा ।" उसके बाद विषमस्वभाव नल और नीलने अपना सन्देश दिया – “अंगद, तुम जाकर हस्त प्रहस्तसे कहना कि तुम लोग जिस तरह भी बन सके, युद्धमें जमे रहना ॥ १-९॥ [९] तदनन्तर अपने पुराने बैरको याद कर, यशाधिप विराधितने अपने सन्देशमें कहा, "रावणको याद दिला देना कि तुमने चन्द्रोदरको मारकर उसका राज्य हड़प लिया है, इससे बढ़कर बुरा काम, दूसरा क्या हो सकता है ? इतना ही नहीं, गौरवशाली मेरा वह राज्य तुमने खर-दूषणको दे दिया । वह राज्य, जो व्याकरणकी भाँति अत्यन्त 'विसर्जनीय- सहित' (विसर्गों (:) और दूत एवं सन्देशहरोंसे युक्त ) था, जो व्याकरणकी भाँति, आगम ( वर्णागम और द्रव्यागम ) का स्रोत था । व्याकरणकी भाँति जिसमें आदेशके लिए स्थान प्राप्त था, व्याकरणकी भाँति जो अर्थोंको धारण करता था । व्याकरणकी भाँति जो गुण और वृद्धिको प्रश्रय देता था । व्याकरणकी भाँति जिसमें विग्रह ( पदच्छेद और सेना ) की परिपूर्णता थी । व्याकरणकी भाँति ही जिसमें सन्धियोंकी व्यवस्था थी । व्याकरणको भौति जिसमें अव्यय और निपात थे । व्याकरणकी भाँति जिसमें
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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