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________________ सभी मंधि ३५ भुसुण्डी पत्तांक साग होंगे। सव्वल, हुलि, हल तथा करवाल इसकी जगह होंगे, पर कणय, कोंत और कल्लवण नमकीनका काम देंगे। कल सहस्त्रप्राप्त शुक्रवार आदि निशाचरोंको मैं ऐसा हो भोज दूँगा । भोजके अनन्तर रग में श्रेष्ठ, गहरी नींद से अभिभूत प्रतापशुन्य वे जब मेरी शरशय्या पर सो रहे होंगे तो मैं भी वहाँ रहूँगा " ।। १-६ ॥ [७] अन्तमें गजशुण्डके समान हाथ वाले पवनसुत हनुमान ने भी अपना सन्देश दिया – “इन्द्रजीत से कहना, मुझे इच्छित for a दो, कल सबेरे तुमसे लड़ेंगा, अपने भयावह नेत्रों युद्ध और मुखोंसे अत्यन्त उट शत्रुयोद्धाओं का घमण्ड, मैं चूर-चूर कर दूँगा । सोरोंसे चूमी गयी और लम्त्रे मुखपट वाली राजपटाके सिर पर मैं तलवार की चोट करूँगा। जल्दी हवा में, और प्रयोपित ध्वजाओंके डोंको मोड़ दूँगा। व्याकुलता और करनेवाले रथोंका प्रसार, मैं युद्धमें एकदम रोक दूँगा । अश्वोंकी मजबूत लगामोंको तोड़ दूँगा । शत्रुसेनाकी पक्षियोंको बलि दूँगा | भटसमूहको चारों दिशाओं में ऐसा घुमा दूंगा जैसे दुर्जनों को घुमाया जाता है । रथ हाथी आदि वाहनोंको मैं उद्यान की ही भाँति खेलमें उजाड़ दूँगा, है पाप, मैं तुझे भी उसी रास्ते भेज दूँगा जिस रास्ते दुर्दर्शनीय अन्नयकुमार गया है । " ।। १-२ ।। [८] इसके बाद, अखण्डितमान, सीताके भाई भामण्डलने अपना सन्देश दिया और कहा, "कल भामण्डल एक ऐसे जल प्रवाहकी भाँति आयेगा, जिसकी थाह, कोई नहीं पा सकता । प्रहार करनेवाले नरवर उस प्रवाहके जलकी मछलियाँ होंगी । चंचल श्वेत छत्र, उसमें फैनकी शोभा देंगे। ऊँचे अड़ों रूपी लहरोंसे वह प्रवाह अत्यन्त कुटिल होगा। पवनाइत पताकाएँ
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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