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________________ २५२ पठमचरित पेक्षा दुम्मणु सोडिय-हारउ । णिय-अन्तेउरु गहु व अ-भाउ || || तही मज्झे महा-मिरि-मागणेण । मन्दोघरि दिह सागण ।।३।। छुड छुड आमेछिय अङ्गपण। णं कमलिणि मत-महागण ॥३॥ नं कुतपसि-वाणि जिणागमेण। णं गाणि गरुट-विरामण ॥५|| णं दियर-संह वराहवेण। णं पवर-महाड हुअवहेण ॥६॥ णं ससहर पटिम महग्गहेण। मम्मोसिय विजा-सरहण ।।७।। 'एकल जेहउ केण सहिछ। अणु वि बहुरूपिणि-विज-सहित ८॥ किउ जेहि णियाम्विगि एउ कम्मु । छह वह वहाँ एसहर जम्मु ॥२॥ जइ मणुस होन्ति सो का, पश्य । हुरुन्नि परिटिज गिग मेथु ॥१॥ श्रेण मरष्टिपण कल्टएँ सासु धणे वत्सा सासें सुहार लाइय हस्था। पेल्खु काई दक्वमि अवस्या' ॥११॥ [१५] एम मणेपिणु दशु-विदावणु। जय-जय-सह स-रहसु रावणु ॥३॥ चलित उपगड उष्ट्रिय कलयल्ल । णं रयणायन परिवजिय-जलु ॥॥ णवर पहुणो चलन्तस्स दिण्णा महामन्द-मेरी मउन्दा दडी दद्धुरा । पसह टिविला य बाहरी झल्लरी मम्म मम्मीस कंसाल-कोलाहला ॥३॥ मुख तिरिडिकिया काहला दहिया सम्मुक ढका हुडका परा। तुणव पणवेकपाणि ति एवं च सिझेवि (!) संसा उणा (?णो) केण ते युजिाय! ॥३॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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