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________________ २५० पउमचरित किं विजाड सुरणन्दिणि दुहेवि। किंदिल अमु गिय हिंसाईषि !!४॥ किं दिन उ बन्धेवि अमर-राह। किं कुसुमसराउहु रह-सहाउ॥१॥ कि दिजउ धणयहाँ सणिण रिद्धि । किं दिज्जउ सम्वोवाय सिद्धि ||१०॥ पत्ता सहुँ देवासुर हि कि इलोक्कु वि सेव करावमि । गवर पसहिवा एषकहाँधवाइहण पहामि ॥११॥ [ ३] तं णिसुणेप्पिणु सुर-सन्तावणु। पुषण-मणोरा उहिउ रावणु॥॥ जा सन्तिहरहों देह ति-भामरि । मुक कुमार सा मन्दोवरि ॥२॥ अजय पट्ट पट्ट सेण्णे । सम्पत्त वत्त कारय-कणे ।।३।। 'परमेसर सुर-सन्धावणासु। परिपुषण मणोरह रामणासु ||३|| उपन्य विज णिचूद्ध धीर।। एहि णिचिन्तुतियसहुमि चोम || गंउ जाणहुँ होसइ एट केष । लह सीयाँ अण्डहि ससि देव' ।।६।। तं वयणु सुणेचि कुमार कुइज । खय-काले दिषायरु णाई उड्ड ।।७।। 'गासहाँ गासहों अइ णाहि ससि । हउँ काषण एक्क करेमि तत्ति |८|| कहाँ तणिय विजकहाँ सणिय सन्ति । कछएँ पेमखेसहो तहाँ असन्ति ।।५।। मई दसरह-णन्दणे किय-पहनें। विस्यहँ अत्याहे मलमणिों ।।१०।। पत्ता तोणा-जुयल-जलें अशु-पेला-कलोल-रो । झवा खण महु केर' णाराय समुऐ ॥१॥ [१४] साव णिसायर णाहुस-बिखत। पंस-मलतड सुखाइ विकार ||
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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