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पउमचरित
किं विजाड सुरणन्दिणि दुहेवि। किंदिल अमु गिय हिंसाईषि !!४॥ किं दिन उ बन्धेवि अमर-राह। किं कुसुमसराउहु रह-सहाउ॥१॥ कि दिजउ धणयहाँ सणिण रिद्धि । किं दिज्जउ सम्वोवाय सिद्धि ||१०॥
पत्ता सहुँ देवासुर हि
कि इलोक्कु वि सेव करावमि । गवर पसहिवा
एषकहाँधवाइहण पहामि ॥११॥
[ ३] तं णिसुणेप्पिणु
सुर-सन्तावणु। पुषण-मणोरा
उहिउ रावणु॥॥ जा सन्तिहरहों
देह ति-भामरि । मुक कुमार
सा मन्दोवरि ॥२॥ अजय पट्ट पट्ट सेण्णे । सम्पत्त वत्त कारय-कणे ।।३।। 'परमेसर सुर-सन्धावणासु। परिपुषण मणोरह रामणासु ||३|| उपन्य विज णिचूद्ध धीर।। एहि णिचिन्तुतियसहुमि चोम || गंउ जाणहुँ होसइ एट केष । लह सीयाँ अण्डहि ससि देव' ।।६।। तं वयणु सुणेचि कुमार कुइज । खय-काले दिषायरु णाई उड्ड ।।७।। 'गासहाँ गासहों अइ णाहि ससि । हउँ काषण एक्क करेमि तत्ति |८|| कहाँ तणिय विजकहाँ सणिय सन्ति । कछएँ पेमखेसहो तहाँ असन्ति ।।५।। मई दसरह-णन्दणे किय-पहनें। विस्यहँ अत्याहे मलमणिों ।।१०।।
पत्ता तोणा-जुयल-जलें
अशु-पेला-कलोल-रो । झवा खण
महु केर' णाराय समुऐ ॥१॥
[१४] साव णिसायर
णाहुस-बिखत। पंस-मलतड
सुखाइ विकार ||