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________________ परमो संधि २७९ गये । कोई चन्द्रकान्त मणियोंको कान्तिसे ऐसे हो गये जैसे चन्द्रमाके ऊपर उनकी स्थिति हो । कितने ही पद्मराग मणियोंके समूहसे लाल लाल हो उठे मानो उन्होंने युद्धकी अभिनय लीलाका अनुसरण किया हो; कितने ही चित्रों में लिखित हाथियोंसे त्रस्त हो उठे, कोई सिंहोंसे और कोई नागोंसे भयभीत हो उठे। वे वानर उन्हीं द्वारोंसे बरसे बाहर हो गये, जिनसे गये थे, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार उदयासे सूर्य किरणें नाना रूपों में निकल जाती हैं ॥१-११॥ [ ५ ] रावणके उस विशाल घरको छोड़कर, वानरोंने सन्तोषकी साँस ली। वे भगवान शान्तिनाथके जिनमन्दिर में पहुँचे। वहाँ उन्होंने देखा कि रावणका सनूपुर अन्तःपुर स्थित है, जो केशोंसे मयूर कलापकी भाँति शोभित है; कुटिल केशपाशमें भ्रमरमालाकी तरह, भौंहों में कामदेवको धनुषलताकी तरह; नेत्रों में नीलकमलवनकी तरह, मुखबिम्बमें चन्द्रमाकी वरह; सुन्दर बोलीमें सुन्दर कोकिल कुलकी भाँति कोमल बाहुओंमें लताघरकी भाँति हथेलियोंसे लाल कमलकि सरोवर की तरह नखोंमें केतकी कुसुमके काँटोंके अग्रभागोंकी तरह स्तनों में स्वर्ण कलशोंकी तरह; सौभाग्य में कामदेवकी प्रसाधन सामग्रीकी तरह: रोमावलीमें नागिनों के परिजनोंकी तरह; त्रिवलिमें कामदेवकी नगरीकी खाईको तरह; गुप्तांग में कामदेव के स्नानघर की तरह ऊरुओंमें तरुण कदलीवनकी तरह; चरणोंके अप्रभागमें पल्लवोंके काननकी भाँति जो शोभित था । गमनमें जो हंस कुलकी भाँति वर क्रीड़ाओं में हाथियोंके झुण्डोंकी भाँति गुणोंमें धनुषशक्ति की भाँति और सम्पूर्ण कलाओं में पूर्णिमाके चन्द्रमाकी माँति शोभित था ।१-११॥ .
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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