SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४० पउमचरित [१] 'भवि य परिन्दहो यय-सम-विष्णहो। काई कोसहुं झाशुत्तिण्णहो ॥१॥ परि अरमास? एव भणन्तु । थिउ रमणिहि णिथ- हियएँ गुणन्तु व ॥२॥ सिर-णमणु जिणाहिब-यन्दणेण। पिय-वन्धणु फुक्ल-णिवत्रणेण ॥३॥ भवहादिपशु पारा। सो दलग-दोन मा णासउद फुरणु फुलणेण। परिजम्वणु घसाऊरणेण ॥५॥ अहरकण पीडी-खण्णे ण । पिण-कण्ठ-गहणुसुहावणेण ||३| अहिंसेय-कलल-कपट-गहेण । अवरुण्णु थम्मालिणेण ॥४॥ पिय-फारशु छेवाकरण । कुरुमाळणु वीणा-प्राधणेण |६|| कर-घायणु मिन्दुव-धायणे। सिकारु कुसुम आखचणेण ॥९॥ कम-धाय असोय-पहरणेण ॥१०॥ धत्ता कुडम-चन्दण है सेन-फुरिज वि गरुना भारा । कि पुणु कुण्डलाई कमय-मउज-फरिसुत्ता हारा ।।११।। [-] का वि देविर काह वि णारिहि । दिन्ति सु-पेस ऐसणयारिधि ।।१।। 'हके ललियनिए लइ णाराई। जाई जिणिम्दहो अषण-जोग्गई ॥२॥ हले दालिमी दालिमाई देहि । विजउरिप, विजउरा छेहि ॥३॥ बहुफलिएँ सुअन्धई बहुफला। स्तुप्पलीएँ रसप्पलाई ॥४॥ इन्दीवरीए इन्दीवराई। सयवत्ति समवत्ता अराह् ।।५।।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy