SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 275
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकहत्तरिम संधि २६७ खोखली होने पर पेड़ ॥ १-१०। [१३] इन्द्र बहुत समय तक उपेक्षा करता रहा इसी लिए रावणने उसे बन्दी बनाया, इस प्रकार उसने खुद अपने विनाशको न्यौता दिया | वह नीतिका अधिकारी जानकार नहीं था ।" यह सुनकर रामने कहा, मीणा करते दशकु है, वह क्षत्रिय कुलमें आग लगाता है और फिर जो तपस्वीको भी नहीं छोड़ता, उसकी बहादुरीका पूछना ही क्या, इससे अच्छा तो यह है कि वह अपने सिर पर राखका घड़ा फोड़ शत्रु जितना अजेय होता है, ( उसके जीतनेपर ) उतना हो यश फैलता है ।" यह सुनकर उनके अंग-अंग रोमांचित हो उठे । उन्होंने कहा कि हम उसे क्षोभ उत्पन्न करते हैं कि जिससे वह अपने ध्यानसे डिंग जाय । तत्र कुमारकी विमानों, वाहनों और हथियार सहित सेनाको देखकर, निशाचरोंकी नगरी में खलबली मच गयी, निशाचर - नगर, अचरज में पड़ गया कि कहीं यह समुद्रमन्थनका जल तो नहीं है ? ॥१-२|| [१४] मृत्यु लीलाका प्रदर्शन करते हुए नगरके भीतर प्रवेश करते हुन् सोनेके किवाड़ और सफेद स्वच्छ हारोंको तोड़तेफोड़ते हुए मणियोंसे जड़ित धरतीको रौंदते हुए अंग और अंगद चिल्ला रहे थे कि रावण अपनेको बचाओ। लोगों में अपने परायेकी चिन्ता होने लगी । उनका पीड़ित मन सहारा नहीं पा रहा था। उस अवसर पर अभय देता हुआ मय संनद्ध होकर रावणके पास पहुँचा, और अपनी सेना अड़ाकर स्थित हो गया । उसने यमका बाहन तोड़ दिया। इतनेमें मन्दोदरीने बीच में पड़कर कहा कि क्या तुमने रावणको घोषणा नहीं सुनी कि जो अन्याय उन्हें अच्छा लगे, वह वे करें; जब तक
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy