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सक्केण वि किया अवहेरि चिरु |
संखड अप्पा
आशियन |
पउमचरि
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जं बाषित वीस-सिरु ॥१॥ मिति अहियारु ण जाणियउ ||२|| 'जो रिड पणमन्त श्रहण ||३|| जो घ पुणु तवसि ण परिहरहु ॥ ४ ॥ वरि मिन्दद्द पिय-सिरें छार-हदि ||५|| तेचिट पहरन्तहुँ जसु समहू' ॥ ६ ॥ रहु-तर वृत्त अङ्गऍहिं ॥७॥ मणु हरेंवि कुमार सेण्णु चलिउ ॥12॥
संणिसुचि सांग
मत् ।
सो खत्तिय कुल कलङ्कु करई । वहीं किं पुलिजह चाह । जेलित दणु हुजउ संमबद्द | तं निसुर्णेवि कण्टङ्गऍहिं । 'सा खोह हुँ जाम झाणु दलिउ' ।
घत्ता
तं स विमाणुस वाहणु उक्खय-पहरणु णिवि कुमारहों तणच बलु । मिसियर पयरु पोलिउ थिय पञ्चालित महण-काले णं उचहि जलु ॥ ९ ॥
जमकर - लीक- दरिसम्तहिं । कचण-चाड - फोडन्त हि । मणि- कोटिम खोणि-खणऍ हि । अपपरिअड सच्चु जणु । शहिँ अवसरे सम्भासन्तु मउ । थि अनि साह अपणउ | मन्दोभरि अन्त ताम थिय । जं भाषतं करन्तु णउ |
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रमन्तरे पसन्तएँ हिँ ॥ १॥ सिय-तार हार तोडन्त हि ॥ २ ॥ 'भरें रावण रक्खु' भणन्तहिं ॥३॥ साहारूण बन्ध तट्ट मणु ॥४॥ सह विदाहाँ पा गई ||५|| किय कालही फेश्चित जपणउ ॥ ६॥ 'किं रावण बोलण णत्रि सुद्दय ॥७॥ नन्दीसह जाम ताम समद्ध || ८||