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________________ पचहत्तरिमो संधि २५९ [] फिर उसने परम जिनकी अर्चना की दिव्य सुग. धित चन्दन, कपूर और केसरसे मिश्रित अनुलेपसे। फिर दित्य नाना प्रकारके फूलोंसे, जिनमें लाल और नील कमल गुंथे हुए थे। अत्युत्तम अशोक, पुंनाग, नाग कुसुम, सपत्र, मालती, हरसिंगार, कनेर, कर वीर, मंदार, कुन्द, बेला, वरतिलक, बकुल, मन्द, सिन्दूर, वंधूक, कोरंट, कुंज, दमण, मरुआ, पिक्का, तिसज्म आदि फूलोंसे उसने जिनकी अचर्चा की। इसके अनन्तर, उसने तरह-तरह रूपवाली मालाओंसे जिनकी पूजा को, जो मालाएँ कर्णाटक नारियों की तरह कामदेवकी सारभूत धी, आभीर स्त्रियोंको तरह विदरूपी भ्रमरोंसे युक्त श्रीं, लाट देशकी वनिताओंको तरह मुखवों में अत्यन्त चतुर थी, सौराष्ट्र देशकी स्त्रियोंकी तरह सब ओरसे मधुर थीं, मालव देशकी पत्नियों की तरह मध्यमें दुबली पतली थी, महाराष्ट्र देशकी स्त्रियोंकी भाँति जो उद्दामवाक (बोली, छालसे प्रगल्भ ) थीं, गीत ध्वनियों की तरह एक दूसरेसे मिली हुई थीं। तरहतरहके मणि रत्नोंसे बनी हुई, किरण जालसे चमकती हुई, सूर्य चन्द्र जसो मालाओं एवं शत-शत पुण्य अमतोंसे, रावणने विश्वस्वामी परम जिनेन्द्रकी पूजा की ।। १-१०॥ _ [१५] उसके अनन्तर, उसने नैवेद्यसे पूजा की, जो गंगाप्रबाहकी तरह दीर्घ, मुक्कासमूहके समान स्वच्छ, सुन्दरीके समान सुमधुर, उत्तम अमृत रसके समान सुरभित, स्वजनके समान स्नेहिल, उत्तम तीर्थ करकी तरह सिद्ध, सुरतके समान तिम्मण( स्त्री, पक्यान्न ) से युक्त थी। फिर उसने नाना प्रकारके दीपोंसे उनकी आरती उतारी। वे दीप, मयूरों की भाँति अतिदीर्घ शिखा ( पूंछ और ज्वाला) वाले थे, जो सुभटोंकी भाँति अणित (प्रणों-घावों, स्त्रियों) से युक्त थे, जूताधिकारीको
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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