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________________ पउमरिट [१] दिवेण अणुलेत्रणेणं सुअन्धेग । सिरिखण्ड-कप्पुर-कुकुम-समिक्षेण ॥1॥ दिब्यहि जाणा-पयारेहि पुष्कोहि। रत्तप्पलिन्दीवरम्मोय-गुप्फेहि ॥२॥ अउत्तयासोय-पुण्णाय-पाएहिं । सयवत्तिया मालई-गरिजाएहि ॥ कणियार करवीर-मन्दार-कुन्देहि । विअइल्ल-वतिलय-घउलेहिं मम्महि ॥४॥ मिन्दर-बन्धुक-कोग-मुहि ! पण निशिप एवं व मालाहि अपग-रूपा। कण्णाहियाहि व सर-सार-भुआहि ।।६।। आदीरियाहि व वायाल-भसलाह। वर-लाहियाहिं व मुह-श्ण्ण-कुसलाहि ।। सौरट्रियाहिंघ सङ्ग-मउआहि । मालविणियाहिं व मझार-आहि ॥८॥ मरहटियाईि उदाम-बायाहिं। गेय-शुणिहि व अण्णग्ण-छायाहि ॥२॥ पत्ता प्पाणाविह-मणिमइयहि किरणम्महहि चन्द-पुर-सारिस्कएँहि । अचण किय जग-णाहहाँ केवल-बाहहाँ पुषण-सएहि व अक्सएँहि ॥१०॥ [10] पच्छा प्ररुपण मणोहरेण । गङ्गा-बाहेण घ दोहरेण ॥ मुत्ता-णियरेण व पण्डरेण । सु-कलत-मुहेण व सु-महुरेण ॥३॥ वर-अमिय-रसेण व सुरहिएष। सुमपेण प सुख सणेहिएण ॥. तिस्पयर-वरेण व सिखएण । सुरएण व तिम्मण-रिद्धपण || पुणु दीपणाणाविहरि । घरहिम हि व अनदीहर-सिहहि ॥५॥ सुहडेहि व वणिऍपि वलियएहि । टिण्टाउत्तेहिं च जलियएहि ॥१॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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