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धूवेण विविध गन्ध पुणु फल. त्रिण सुखांहिष्ण ।
साहारेण व अह पक्कएण |
पहु-अण एम्ब करें जान ।
पउमचरिउ
क धुणे हुँ पयस्थ-विचित्तं । मोक्खपुरं परिपालय-गतं । सोम-सुई परिपुण्ण-पषितं । सिद्धि बहु-मुह दंसण-पत्तं । मावलयासर वामर-छतं । जस्स वाहिले खगतं । चन्द्र- दिवायर-सह- छतं । दयि जेण मणिन्दिव-छत्तं ।
मयण व जिणवर द्रढएण ॥७॥
करवेण वसव - रसाहिए ॥८॥
तण व साहा मुक्कए ||१||
गयणजे सुर बोन्ति ताम् ॥१०॥
धत्ता
'जह विसन्ति एहु घोसह कलए होसह सो वि राम लखगहुँ जउ । सिन्ध अरु
इन्द्रियसि करत हुँ
सोय
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गाय - नराण सुराण विश्चित्तं ॥ १ ॥ सन्ति- जिणं सखि गिम्मक वतं ॥१॥ जस्स चिरं चरित्रं सु-पविचं ॥ ३ ॥ सील गुणव्वय सक्षम-पत्तं ॥४॥ सुन्दुहि दिन्वणी- पह-वत्तं ||५|| अट्ट सयं चिय लक्षण गतं ॥६॥ वारु-असोम महदूदुम छतं ॥१७॥ पोमि विणोत्तममम्बुज- शेषं ॥ ८ ॥
( दीध )