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________________ २६० । धूवेण विविध गन्ध पुणु फल. त्रिण सुखांहिष्ण । साहारेण व अह पक्कएण | पहु-अण एम्ब करें जान । पउमचरिउ क धुणे हुँ पयस्थ-विचित्तं । मोक्खपुरं परिपालय-गतं । सोम-सुई परिपुण्ण-पषितं । सिद्धि बहु-मुह दंसण-पत्तं । मावलयासर वामर-छतं । जस्स वाहिले खगतं । चन्द्र- दिवायर-सह- छतं । दयि जेण मणिन्दिव-छत्तं । मयण व जिणवर द्रढएण ॥७॥ करवेण वसव - रसाहिए ॥८॥ तण व साहा मुक्कए ||१|| गयणजे सुर बोन्ति ताम् ॥१०॥ धत्ता 'जह विसन्ति एहु घोसह कलए होसह सो वि राम लखगहुँ जउ । सिन्ध अरु इन्द्रियसि करत हुँ सोय [ 11 ] गाय - नराण सुराण विश्चित्तं ॥ १ ॥ सन्ति- जिणं सखि गिम्मक वतं ॥१॥ जस्स चिरं चरित्रं सु-पविचं ॥ ३ ॥ सील गुणव्वय सक्षम-पत्तं ॥४॥ सुन्दुहि दिन्वणी- पह-वत्तं ||५|| अट्ट सयं चिय लक्षण गतं ॥६॥ वारु-असोम महदूदुम छतं ॥१७॥ पोमि विणोत्तममम्बुज- शेषं ॥ ८ ॥ ( दीध )
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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