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________________ सरो संधि वसन्तका भाह भी बीत गया, फागुनके अभिनव नन्दीश्वरत्रतके आगमन के साथ नगर में 'हिंसा' यन्द कर दी गयी। आठ दिन तकके लिए जिनवरका जयकार हो, आठ दिनके लिए 'महीमद' को निकाल दो, आठ दिन तक जिनमन्दिरकी स्थापना हो, आठ दिन तक जीवोंका वध मत करो, आठ दिन तक लड़ाई बन्द रखो, आठ दिन तक इन्द्रियोंके निशाचरोंका दमन करो, आठ दिन तक उपवास करो, आठ दिन तक महादान दो, आठ दिन तक अपना ध्यान करो, आठ दिन तक ग्यारह गुणस्थानों का ध्यान करो। आठ दिनों तक गुणोंका ग करो, उनका सेवन जप और अनुभव करो, आठ दिन तक प्रियवचन बोला, अणुव्रत और शिक्षात्रतका प्रकाशन करो । आठ दिन तक ईर्ष्या छोड़ दो । तबतक जबतक यह फागुनका नन्दीश्वर व्रत है । प्रत्याख्यान करो ( सब कुछ छोड़ो ) प्रतिक्रमण सुनो। मनको बशमें रखो। रक्तकमल तोड़कर अपने हाथोंसे आदरगीय जिनभगवानकी अर्चना करो ।। १-१० ।। , २४७ [ ७१ इकहत्तरवीं संधि ] राम और लक्ष्मणके गुणोंसे युक्त, दूतके वचन सुनकर, राजा रावणने आक्रमणका इरादा स्थगित कर दिया। जगसन्तापदायक रावणने विद्याके निमित्त शान्तिनाथ जिनमन्दिरमें प्रवेश किया । [२] श्रेष्ठ नन्दीश्वर पर्वके आगमन पर ( प्रकृति खिल उठी ) मानो बसन्त माहूको आमन्त्रित किया गया हो। नन्दीश्वर पर्व शाश्वत सुख प्रदान करनेवाला था, और फागुन
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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