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________________ सप्तरिम संधि २४३ क्रोध ठंडा पड़ गया और वह अपने आसनपर जाकर बैठ गया। इस अवसर पर कुछ हड़बड़ाकर रावणके दूतने फिर रामसे निवेदन किया, "हे देव, आपको यह अच्छा अनुचर उपलब्ध है ठीक वैसे ही, जिस प्रकार सुकाव्य में अपशब्द निबद्ध होता है, शोभाहीन होकर भी, जैसे वह अपशब्द कान में नहीं खटकता, उसी प्रकार अन्य विद्वानह मूर्ख भी नहीं जान पड़ता, परन्तु इससे आपका ही हलकापन होगा, उसी प्रकार जिस प्रकार समुद्र नमक के रससे खारा हो जाता है । कल ही आपको आपत्तिका सामना करना होगा, राँड़की भाँति ( विधवाकी भाँति ) सबको रुलाओगे। इस समय व्यर्थ गरजने से क्या लाभ? महायुद्धमें तुम स्वयं अपनी ताकत जान जाओगे। एक शक्ति लगनेसे तुम्हारी यह हालत हो गयी, लाखों हथियारोंके चलने पर तो बानर पक्षियोंकी भाँति उड़ जायेंगे ॥१-१०॥ [१०] युद्धभूमि में रावण तुम्हारे सिर कमलको तोड़कर, अपना पीठ बनायेगा, और इन्द्रजीत, भानुकर्ण एवं मेघवाहनको अपने हाथों मुक्त कर देगा। वासुदेव और बलदेव ( लक्ष्मण और राम ) के मारे जानेपर वह अहंकारके साथ सीताको ग्रहण कर लेगा । चाहे उसको आयु भी क्षीण हो जाय, परन्तु तुम जैसे लोग उसे नहीं जीत सकते | क्या हरिण सिंहको देख सकते हैं, क्या सर्प गरुड़को वश में कर सकते हैं, क्या जुगुनू सूर्यको कान्तिहीन बना सकते हैं, क्या वनतृणोंसे आist बन्दी बनाया जा सकता है, क्या नदियोंके प्रवाह समुद्रका बाँध तोड़ सकते हैं, क्या हाथोंसे चन्द्रमाको ढँका जा सकता है । क्या शयर विन्ध्याचल हिला सकते हैं, तुम जैसे छोटे-मोटे राजा तो उसके लिए एक मजाक है ।" यह सुन
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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