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________________ २४४ तं पिसुवि भहिं गलथलिउ | गख स पराहवु लङ्क पराइड । दुथ कहखण राम ज जाणहि तं वि पउमचरित टक्कर- पश्यि घाऍहि बलि ॥ ८॥ कदिउ 'देव हउँ कह विप घाउ ||९|| पट्टणें बोसण मि अच्छमि साणारूड घत्ता ण करन्ति सन्धि उ बुतउ । आय खय-काल सिउ ॥१०॥ [ ११ ] || दुबई | सम्बु कुमारु जेहिं विनिवाइट घाइ खरु वि दूसणो । जेहिं महणी समुल्लङि पक्ष-ग्गाह भीसणी ||१|| । हस्थ-पहरथ जेहिं संचाइय । आणि जेहिं त्रिसला-सुन्दरि । तेहिं समाणु णव सोहर विग्गहु तं त्रिवि णरवइ चिन्ताविङ । 'होसड़ कंम कज्जु गाउ जाणमि किं पादमि समसुती पर-वलें । इन्दइ- कुम्मयण्ण विणिचाइय ॥२॥ झुंड जीवाचं लक्ष्ण- प्रेसर ॥३॥ लहु वइ देहि देहि मुर्गे सङ्ग' ||४|| महगावन्थ समुद्र व पावित ||५ किं उक्सन्धे बन्धेवि आणमि ॥६॥ किं सरधोराण लायमि हरि-वलें ॥७३३ जइ विस- साहस- मुहु समप्यमि । तो विण रामहों गेहिणि अप्पमि || अधु उबाट एक्कु जे साहमि । बहुरुवियि विज आराहमि ||१|| धत्ता जीव भट्ट दिवस मम्मीसमि | सन्तिहरु पईसमि ॥१०॥ [१२] ॥ दुबई | एम मणेवि तेण क्रुद्ध जे च्छुड माहों ताएँ विगमे । घोसि पुरे मारि हिणव- फरगुण-मन्दीसरागमे ||१|| | ।
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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