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________________ २४१ सत्तरिमो संधि का त्याग कर दें। यह सुनकर रामने उत्तर में कहा, “निधियाँ और रत्न, अश्व और गज एवं राज्य सत्र कुछ वही ले लें, हमें तो केवल सीता देवी चाहिए" ॥१-१०|| [८] रामके संकल्पको जानकर सामन्तक दूत जरा भी नहीं हरा | पूरे दरबारको तिनका बराबर समझते हुए उसने कहा, “अरे बलराम देव, और अधिक मत बोलो, केवल पत्नीकी बात छोड़ दो, लंकाधिपति दूसरा हिमालय है, यह सिय (सीता और शीत) को एक पलके लिए भी नहीं छोड़ सकता । जो रात-दिन तलवार रूपी दर्पणकी भाँति स्वप्न में शत्रुसेनाको दिखाई देता है, जिसने कुबेर और कुलान्तको भी पलसम्म बना दिया, सहस्र किरण नलकूबर और इन्द्रको भी, प्रभावहीन कर दिया, जिसने वरुणको संग्रामभूमिमें ही पकड़ लिया, जिसने अष्टापद और पावकका उद्धार किया। ऐसे (प्रतापी) रावणके साथ, यदि आप संधि नहीं करते तो निश्चय ही अयोध्या नगरी जिन्दा नहीं बचेगी।" यह सुनते ही भामण्डल ऐसा भड़क उठा, मानो तलवार सहित इन्द्र ही भड़क गया हो। उसने कहा, "अरे दुष्ट नीच, मैं मुकुट और कुण्डलके साथ, तुम्हारे सिरको तालफलके समान धरतीपर गिरा दूंगा। कौन तू और कौन तेरा रावण, जो तू बार-बार इतना अशोभन बोल रहा है," तब उसे मना करते हुए लक्ष्मणने यह घोषणा की, "तुम्हें रामका आदेश है । और फिर क्या यह ठीक होगा कि तुम शिशु,पशु, तपस्वी और स्त्रियों के प्राण लो" ॥२-१| [२] प्रति शब्दमें पठित 'प' के समान यह सिरको पीड़ा देनेवाला दुष्ट, दुर्मुख, दुर्विदग्ध, दुःशील और अज्ञानी है। इसको मारने में कौन-सी वीरता है, इससे अकीर्विका बोझ बढ़ेगा और कुलको कलंक लगेगा। यह सुनते ही भामण्डलका
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
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