SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१७ पडमचरित घत्ता मिहिन हय-वाय-रज्जू । अहहुँ पर सीवएँ कज्जू ॥१०॥ सम्बई सो में लएड [] ॥ दुबई ॥ तं णिसुग्गेवि वयष्णु काकुस्थहाँ ईसीसि पि या कम्पिओ । तिण-समु गणे वि सयल अग्थाणु दसाणण-दुइ जम्पिओ ॥१॥ 'अहो घलएव देव मा बोल्लहि। कन्नौ तणि वत्त भामेलहि ॥२॥ लकहिब हेमन्त में वीयउ। जो णिपिसु वि णज होइ णिसीयउ।३। जो त्तिहिउ परिकमगप्पण। दीसह सुविणएँ असिवर-दष्पणे ॥३॥ जेण धणड कियन्तु किड णिप्पहु । सहसकिरणु पालकवह सुर-पछु ।।५।। जेण वरुणु समरहण धरित्रउ । भट्टावउ पावउ उद्धरियर ॥६॥ तेण समउ जा सन्धि ण इछाहि । तो अवजा जीवन्तु ण पंच्याहि ॥ सं णिसुणेवि कुइ3 मामण्डल। णं उहिउ स-खग्गु भाषालु ॥१॥ 'अरें पल खुद स-मउड स-कुण्डलु पारमि सीसुजेम तालहों फल ॥९॥ को सुई कहाँ केरउ सो रावणु। मुखमा अम्पहि अ-सुहावणु'।१०। पत्ता सक्खणु घोसह एम सिसु-पसु-तसि-तियाहुँ 'सउ रामही केरी साणा । कि उत्तिमु मेगाह पाणा ॥१॥ । दुवई । दुम्मण दुषिपद दूसीले भयाणं । सरहों माहिदन्त-परिसर-पडिय-पूसय- समाणेणं ॥
SR No.090356
Book TitlePaumchariu Part 4
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorH C Bhayani
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages349
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy